ONLINE HINDI JOURNAL
Friday, 3 April 2009
शर्मिंदा कितना माहताब हुआ ------------------
तेरा चेहरा जब बेनकाब हुआ
शर्मिंदा कितना माहताब हुआ ।
तुने पूछा
था मुझसे जो सवाल
पूरा
उसी में मेरा जबाब हुआ ।
यार मेरा ,पाकर मोहब्बत का पैगाम
खिल के देखो,हँसी गुलाब हुआ ।
कुछ भी कहो पर अधूरा था
मुझसे मिलके पूरा तेरा शबाब हुआ ।
1 comment:
vandana gupta
4 April 2009 at 14:44
waah kya kahne..........har sher khoobsoorat
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