कातिल अदा है सादगी इससे बचा करो ,
क़ज़ा ये ऐसी हुस्न की कि दिल कातिल कि दुआ करे /कातिल अदा है सादगी ,
हुस्न का दिव्यास्त्र ये जों रखता है वो संभाल ,
चलता ये वहां भी जहाँ कोई अंदाज न चले ,
जीतता है ये ही कैसे भी वो चले
कातिल अदा है सादगी ,
चलता है वो सादगी जब सूझे न कोई चाल
होता है हसीं का हर वार जब बेकार ,
धीमे धीमे अपनी इस क़ज़ा को वो चले;
आशिक को फिर हौले हौले वो छले
आशिक को फिर हौले हौले वो छले
चाहता है वो जब जीतना हार हाल में
करता है तब सादगी जों करता है दिल पे वार