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Thursday, 2 April 2009

विनम्रता की साकार प्रतिमा :डॉ.सुरेश जैन

डॉ.सुरेश जैन जी से मेरी पहली मुलाकात आज से ४-५ साल पहले शिरूर मे ही हुई । शिरूर मे एक राष्ट्री संगोष्टी का आयोजन था ,जिसमे मुझे भाग लेना था । डॉ। सरेश जैन जी के प्रयासों से ही यह आजोयन उनके महाविद्यालय ''चाँद मल ताराचंद बोरा महाविद्यालय '' मे हो रहा था । आप उस समय महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप मे कार्यरत थे ।
जब मै शिरूर बस अड्डे पर पहुँचा तो महाविद्यालय के कुछ छात्र हमारे इंतजार मे खडे थे । मै ख़ुद उनके पास पहुँचा और वे मुझे निर्धारित निवास स्थान पे ले गये । मै रात १० के आस -पास शिरूर पहुँचा था । सेमीनार अगले दिन शुरू होना था । रात के खाने पे डॉक्टर जैन जी से पहली मुलाकात हुई । एक सामान्य सा दिखने वाला विनम्र व्यक्ति मेरे सामने था । सब के पास जा-जा कर उनकी खोज -खबर लेता हुआ । अव्यवस्था के लिये माफी मांगता हुआ । यद्यपि अव्यवस्था जैसी कोई स्थितिती नही थी । मगर यह डॉक्टर जैन जी का स्वभाव था ,उनका बड़प्पन था ।
अचानक डॉक्टर जैन मेरे पास आये और बोले ,''आप कल्याण से मनीष कुमार मिश्रा जी हैं ?'' मैं आश्चर्य चकित हो गया । मैने कहा ,"जी सर ,लेकिन आप ने मुझे कैसे पहचाना ?'' जैन साहब मुस्कुराते हुवे बोले ,''मनीष जी आप हमारे मेहमान है ,आप की खोज-खबर तो रखनी ही पड़ेगी ना । '' मै कुछ समझ नही पाया ,फ़िर जैन साहब ने ही कहा ,''आप जब रात बस अड्डे पर आये तभी बच्चो ने मुझे सुचना दी । '' मै यह सोच कर हैरान था की इतने बडे आयोजन मे जहा २५० से ३०० प्रतिभागी देश भर से आये हो ,वंहा हर प्रतिभागी के बारे मे ध्यान जैन साहब कैसे रख सकते हैं ? लेकिन यही तो जैन साहब का व्यक्तित्व है ,जो उन्हे खास बनता है ।
पूरा सेमीनार अच्छी तरह संपन्न हुआ । जाने का समय हुआ तो मै जैन साहब के पास पहुँचा । जैन सर को प्रणाम कर मैने जाने की अनुमति मांगी । जैन साहब ने प्रमाणपत्र ,आने जाने के खर्च आदि की जानकारी लेकर अपनी कुछ संकावो का समाधान किया । फ़िर धीरे से मेरा हाथ पकड़कर बोले ,'' बेटा आप का शोधपत्र बहुत ही अच्छा है । जल्द ही वाणी प्रकाशन से मै हिन्दी साहित्य के सन्दर्भ मे यंहा पढे गये कुछ चुनिन्दा लेख प्रकाशित करूँगा , और आप का लेख मैने चुन लिया है । '' मुझे बहुत खुशी हुई की इतने सारे हिन्दी के विद्वानों मे जैन साहब ने मेरे लेख को महत्त्व दिया । आज वह पुस्तक प्रकाशित भी हो गई है ,''हिन्दी साहित्य का इतिहास : नए विचार नई दृष्टि " नाम से ।
डॉ.सुरेश जैन जी साधार व्यक्तित्व के असाधारण व्यक्ति हैं । आप ने अपना पूरा जीवन अध्ययन -अध्यापन को समर्पित किया । रचनात्मक कार्यो से सदा जुडे रहे । अपने विद्यार्थियों से जुडे रहे । ३० वर्ष से भी अधिक का समय इन कार्यो मे लगा चुके जैन साहब अपने विद्यार्थियों को ही अपनी पूजी समझते हैं ।
आज जब जैन साहब के सभी शोध छात्रो ने उनका गौरवग्रंथ निकलना चाह तो ,मै भला बिना लिखे कैसे रह सकता था । जैन सर जैसे कद्दावर व्यक्तित्व के बारे मे मै क्या लिख सकता हूँ ? लेकिन अपने लिखने के प्रयासों से उनके प्रति अपनी भावनाये तो व्यक्त कर ही सकता हूँ । जैन सर आप दीर्घायु हों और आप का आशीष हम सब पर बना रहे यही इश्वर चरणों मे मेरी प्रार्थना है ।