वर्तमान समय मे भी दहेज बड़ी समस्या के रूप मे हमारे सामने है । यह समस्या केवल अशिक्षित के परिवालो की नहीं है, बल्कि पढ़े लिखे लोगो की भी यही समस्या है। क्योकि समाज को दीखाने के चक्कर मे हम यह भूल जाते है की हम पढ़े लिखे है। उस वक़्त बस यही ख्याल रहता है की हम कितना समाज को दिखाए ,की हमें कितना मिला है और हमने कितना खर्च किया है। मुझे यह बात अब तक नहीं समझ आयी की हम ऐसा क्यों करते है ।
सबसे बड़ी तकलीफ की बात ये लगती है की जो जितना शिक्षित है वो उतना ही डिमांड करता है । जो गुरु हमे सिखाते है की दहेज लेना और देना दोनों ही बुरी बात है वो भी दहेज लेने और देने मे भी पीछे नहीं हटते।
जो जितना पढ़ा लिखा है वो उतना ही डिमांड करता है। पढने लिखने का क्या मतलब फिर ... जब हम आज भी इतनी छोटी सोच rakhte है। apni सोच को badhao na की apni income को...kam se kam शिक्षित लोगो se to ये umid की ja sakti है।