02 अक्टूबर को इसबार भी
राजघाट पर सुबह सुबह
गांधी जी के तीनों बंदर आए
मगर बदले बदले से
उनके मिजाज़ नज़र आए।
पहले बंदर ने
बापू को पुष्प अर्पित करते हुए कहा
बापू तेरे सत्य और अहिंसा के हथियार
अब किसी काम नहीं आ रहे हैं
इसलिए हम भी आजकल AK 47 चला रहे हैं।
दूसरा बंदर बोला
बापू
बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो
का तेरा मंत्र भी फेल हो गया है
अच्छा देखने, बोलने और सुनने को
सालों से तरस गया हूं ।
इसलिए मैं भी
तुम्हारी बात नहीं मान रहा हूं
लेकिन बापू
इस तरह बहुत माल कमा रहा हूं।
तीसरा बंदर बोला
बापू तेरे नाम का धंधा
अब खूब चल रहा है
हर सफ़ेदपोश कातिल
तेरे नाम के पीछे छुप रहा है।
इसलिए बापू
मैं भी तेरे नाम के पीछे
सारे बुरे काम कर रहा हूं
बापू
इस तरह बड़े आराम से जी रहा हूं।
बापू ने तीनों को सुना
और दुखी मन से बोले
पहले मुझे मारा
अब मेरे विचार मारे जा रहे हैं
ये मेरे अपने ही तो हैं
जो मेरे नाम का व्यापार कर रहे हैं।
लेकिन याद रखो
सत्य और अहिंसा के विचार
कभी मर नहीं सकते
मेरे कहे शब्द
कभी कट नहीं सकते
हर भीषण युद्ध के बाद
जब भी शांति की सोचोगे
यहीं इसी राजघाट पर
आकर खूब रोओगे ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा