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Friday, 29 April 2011

गुनाह फिर से, कोई कराना चाहते हैं

शायद फिर से ,मुझे सताना चाहते हैं  
सालों बाद, आज वे मिलना चाहते हैं  



देकर अपनी,उसी मोहब्बत का वास्ता ,
गुनाह फिर से, कोई कराना चाहते हैं . 


अब जो कि, वापस  आ ही नहीं सकता ,
वे वही , बिता  हुआ  ज़माना  चाहते  हैं .


मैंने जब  पूछा  तो,  हंसकर  बोले ,  
मोहब्बत में तुम्हे मिटाना चाहते हैं .

 
हर शाम यारों की मफिल का सबब,
कुछ पीना तो ,कुछ पिलाना चाहते हैं. 
 

जितने भी हैं, आज के सियासतदान ,
ये देश का खजाना,बस लुटाना चाहते हैं .