“ अक्टूबर उस साल ” काव्य संग्रह की समीक्षा
“अक्टूबर उस साल”
डॉ. मनीष मिश्रा जी
वर्तमान में आप महाराष्ट्र मुंबई विश्वविद्यालय के .एम. अग्रवाल महा विश्वविद्यालय कल्याण (पश्चिम) हिंदी विभाग में प्रमुख के पद पर कार्यरत है | एक दर्जनों से अधिक राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियो के सफल आयोजक | आपने 11 पुस्तकों का संपादन तथा विदेशों में अपनी कविताओं तथा कहानियों एवं शोध आलेख से पाठकों पर अपनी लेखनी का गहरा प्रभाव डाला है | वर्ष 2019 में आपका काव्य संग्रह “अक्टूबर उस साल” प्रकाशित हुआ | वर्ष 2020- 21 के लिए आपको महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा संत नामदेव पुरस्कार स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया है| यह पुरस्कार आपको “तुम्हारे शहर में”काव्य संग्रह के लिए प्रदान किया गया | उन्होंने डॉ रामजी तिवारी के निर्देशन में कथाकार “अमरकांत : संवेदना और शिल्प”पीएचडी के लिए विषय को चयनित कर सर्वोच्च अध्ययन के लिए उन्हें वर्ष 2003 में श्याम सुंदर गुप्ता स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया | वर्ष 2014 से वर्ष 2016 तक आप यूजीसी रिसर्च अवॉडी के रूप में चुने गए | कोविड-19 के कठिन समय में भी आपने महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा संपोषित “75 साल 75 व्याख्यान” नामक ऑनलाइन व्याख्यान को सफलतापूर्वक चलाया | “अक्टूबर उस साल”काव्य संग्रह में 56 कहानियों का समावेश है | हर एक कविताओं का अपना एक अलग पहलू है | दूसरों के प्रति सकारात्मक आत्मीयता का भाव, निस्वार्थ प्रेम की भावना ,सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर भय को पराजय कर जीने की नई उमंग- तरंग को दर्शाती है| मस्तिष्क और हृदय के बीच की जंग में हृदय की जीत को दर्शाती है | उनकी कुछ कविताएं मातृत्व भाव को स्पर्श करती हुई सहज ही जुड़कर बचपन से यौवन तक की यात्रा से गुजरते हुए मां के अंतिम समय की पीड़ा को दर्शाती है| भूली बिसरी विस्मृतियों को याद करके आनंद की अनुभूति होती है | उनकी कविताएं जीवन के हर एक पड़ाव तथा भाव को व्यक्त करती है| प्रकृति के साथ मनुष्य की भावनाओं वेदनाओ को जोड़ने का सार्थक प्रयास किया है | दूसरी और नारी संवेदना तथा समाज में चल रही वर्तमान स्थिति के विभिन्न पहलू को स्पर्श करती कविताओं का संकलन भी किया है | उन्होंने “अक्टूबर उस साल” में व्यक्ति की पूरी जीवन यात्रा के अनछुए पहलुओं को जोड़कर स्वयं की आपबीती जीवनी का जीवंत रूप कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है | उनकी कविताओं से पाठक स्वयं ही जुड़ जाता है, क्योंकि उनकी पंक्तिया कहीं ना कहीं हमारे जीवन से जुड़ी हैं और हमारे भीतर झांकती हुई हमारी भावनाओं को प्रस्तुत करती हैं | उनकी कविताओं को पढ़कर हमें यह महसूस होता है, कि यह हमारे ही जीवन का प्रतिबिंब है| और अनचाहे पहलुओं को छू लेती है| इनकी कविताओं में पाठक अपने अतीत के पन्नों को खोल देता है तथा इन पंक्तियों में अतीत को प्रत्यक्ष रूप से जीने लगता है | इस काव्य संग्रह में मेरी रुचि का कारण मेरी भावनाएं हैं | जो इस काव्य संग्रह में अपने वास्तविकता तक पहुंचती है | और यह उन सभी को पढ़नी चाहिए जो अपने भावों की प्रस्तुति करना चाहते हैं असल में “अक्टूबर उस साल” की कविताएं हृदय के तारों को झंकृत करती है | और मैं यह काव्य संग्रह उन सभी पाठकों से पढ़ने का निवेदन करूंगी जो अपने आप से रू-ब-रू होना चाहते हैं |
समीक्षक- गरिमा .आर. जोशी
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