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Thursday 11 April 2013

मेरी बन्दगी वो है बन्दगी जो/ शकील बँदायूनी




मेरी ज़िन्दगी पे मुस्करा मुझे ज़िन्दगी का अलम नहीं
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं

मेरा कुफ़्र हासिल--ज़ूद है मेरा ज़ूद हासिल--कुफ़्र है
मेरी बन्दगी वो है बन्दगी जो रहीन--दैर--हरम नहीं

मुझे रास आये ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअतें
उन्हें ऐतबार--वफ़ा तो है मुझे ऐतबार--सितम नहीं

वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िन्दगी वही मरहले
मगर अपने-अपने मुक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं

वो शान--जब्र--शबाब है वो रंग--क़हर--इताब है
दिल--बेक़रार पे इन दिनों है सितम यही कि सितम नहीं

फ़ना मेरी बक़ा मेरी मुझे 'शकील' ढूँढीये
मैं किसी का हुस्न--ख़्याल हूँ मेरा कुछ वुजूद--अदम नहीं