Thursday, 23 April 2009

kya kahun

क्या कहूँ किस बात पे,किस बात पे मै चुप रहूँ ;
जान पाता नहीं मै. हंसू किस बात पे ; किस बात पे गुम सुम रहूँ /
बड़ी उलझन है ,सुलझाती नहीं है बात अब ;
बच्चों के अरमानो को, कैसे पहनायुं अपनी असफलता का सब्र ;
माँ की आशावों को, क्या बतलायुं मेरी बदहाली का सबब/
कैसी राहों में उलझा ,कैसे बनी जिंदगी अजब ;
क्या कहूँ किस बात पे, किस बात पे मै चुप रहूँ ;
जान पाता नहीं मै. हंसू किस बात पे ; किस बात पे गुम सुम रहूँ /
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