Showing posts with label आवारगी 2. Show all posts
Showing posts with label आवारगी 2. Show all posts

Tuesday, 7 May 2013

आवारगी 2


          उसे भुलाने का कोई सलीका नहीं आता
          बिना उसके जीने का तरीका नहीं आता

          मैं दे तो दूँ , सब के सवालों के जवाब
          पर मेरे ओठों पे नाम, उसका नहीं आता

          ख़्वाब मेरे भी टूटे हैं यूँ तो कई लेकिन
          अधूरे ख्वाबों को अधूरा,छोड़ा नहीं जाता

          यक़ीनन होगी तेरी कोई मज़बूरी लेकिन
          मुझसे तो इसकदर ,मुँह मोड़ा नहीं जाता ।  

Sunday, 25 December 2011

आवारगी- 2



   
 आवारगी मेरी फ़ितरद मेँ है ,
 आवारगी मेरी आदत मेँ है ।

 ज़िंदगी तो वही थी जो आवारगी में बीती ,
 मजा कहाँ कोई इस शराफत मेँ है ।
                   
हौसला, हिम्मत और ताकत चाहिए,  
 लुफ्त बहुत ही बगावत मेँ है ।