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Friday, 9 July 2010

न की इतनी गैरत की मुलाकात कर लेती ,

न की इतनी गैरत की मुलाकात कर लेती ,
होती अपनो की परवा तो कैसे रात कर लेती ,
बला की कशिश है तुझमे लोग कहते है ,
गैरों से न मिली फुर्सत जों मेरे रंजोगम से आखें चार कर लेती /

Monday, 5 July 2010

मिला बड़े शौक से किसी से,


बड़ा रुलाया तेरी बातों ने रह रह कर ,
सब कुछ कहा तुने मोहब्बत ना कह कर ;
.
मिला बड़े शौक से किसी से, किसी से बढ -चढ़ कर ;
लगा किसी के गले ,मिला किसी से दौड़ कर ;
किसी को देख मुस्काया,खिलखिलाया किसी से मिलकर ;
बैठा किसी के पास रुक कर , सुना किसी की बात दिल भर कर ;
.
सुना किसी के भाव भी,
देखा किसी की आखों में चाह भी ;
इनायत कर दी किसी पे मिलकर,
शिकायत भी सुन ली किसी की छुप कर ;
कहा किसी से बात दिल की ,
सुना किसी की बात मन की ;
.
सबसे मुलाकात कर ली ,
मन की चाह कर ली ;
जिनको न परवाह थी खुशिओं की ;
उनका भी साथ कर ली ;
.
खुशियाँ तेरी इसी में थी शायद ,
शायद तेरा यही ठौर था ,
न मुझसे मिलने की चाह की ,
शायद मै अकेला गैर था /
.
तरसता रहा मै पल- पल ,
जलता रहा मै हर पल ,
सोया नहीं हूँ अब भी ,
तड़पता रहा मै हर पल /
.
मेरे भावों से उसे क्या ,
मेरी राहों से किसे क्या ,
जब तू ही नहीं हुयी तेरी ,
गैरों की चाहत का मुझे क्या /
.