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जंहा तक बात गजलों की है तो ,यह तो साफ़ है की इस देश की फिजा गजलों को बहुत पसंद आयी. हमारे यहाँ गजलों का एक लम्बा इतिहास है,जो की बहुत ही समृद्ध है. ग़ज़ल प्राचीन गीत -काव्य की एक ऐसी विधा है,जिसकी प्रकृति सामान्य रूप से प्रेम परक होती है. जो अपने सीमित स्वरूप तथा एक ही तुक की पुनरावृत्ति के कारण पूर्व के अन्य काव्य रूपों से भिन्न होती है.ग़ज़ल मूलरूप से एक आत्म निष्ठ या व्यक्तिपरक काव्य विधा है.ग़ज़ल का शायर वही ब्यान करता है जो उसके दिल पे बीती हो.इसीलिए तो कहा जाता है क़ि ''उधार के इश्क पे शायरी नहीं होती.'' किसी का शेर है क़ि-
हमपर दुःख का पर्वत टूटा,फिर हमने शेर दो-चार लिखे
उनपे भला क्या बीती होगी,जिसने शेर हजार लिखे .
उर्दू कविता क़ि सबसे अधिक लोकप्रिय विधा ग़ज़ल है.भारत में इसकी परम्परा लगभग चार सदियों से चली आ रही है. ''वली''दकनी इसका जनक माना जाता है.ग़ज़ल की जब शुरुआत हुई तो वह हुश्न और इश्क तक ही सीमित था,लेकिन समय के साथ -साथ इसका दायरा भी बढ़ता गया. आज जीवन का कोई ऐसा विषय नहीं है जिसपर सफलता पूर्वक ग़ज़ल ना कही जा रही हो.
आज हम देखते हैं की कई भारती भाषाओँ में ग़ज़लें सफलता पूर्वक लिखी जा रही है. हिंदी,मराठी,गुजराती,भोजपुरी,सिन्धी,पंजाबी,कश्मीरी,नेपाली,संस्कृत,
बंगाली,उड़िया,राजस्थानी और डोगरी जैसी भाषाओँ में भी ग़ज़ल लिखी और सराही जा रही है . मुझे ख़ुशी है की अफसर दकनी जी ने अपनी नज्मों को हिंदी में प्रकाशित कराया,हम जैसे लोग इस कारण ही इनकी नज्मों को पढने का आनंद ले पा रहे हैं.
दकनी जी अपनी गजलों के माध्यम से अपना भोगा हुआ यथार्थ ही चित्रित करते हैं. यही कारण है की उनकी गजलों में इतनी गहराई और विश्वसनीयता है. आप की ग़ज़लें संवेदना के स्तर पे हर आदमी को झकझोर देती हैं .अपनी वालिदा मोहतरमा को अपनी जिन्दगी का सरमाया समझने वाले दकनी जी माँ नाम से अपनी एक नज्म शुरू करते हुए लिखते हैं क़ि-
''तेरे साए में मुझ को राहत है माँ
तेरे पाँव के नीचे जन्नत है माँ''
अपनी माँ के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति रखने वाले दकनी जी को भारतीय सभ्यता और संस्कृति विरासत में मिली है .वे माता के चरणों में ही स्वर्ग देखते हैं .आप क़ि गजलों से यह भी साफ़ मालूम पड़ता है क़ि आप एक खुद्दार व्यक्ति हैं .चंद शेर देखें --
उधर साथ उनके जमाना रहा
मै मजबूर तन्हा था तनहा रहा .
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पहुँच पाई मुझ तक न -दुनिया कभी
मेरा कद था ऊँचा सो ऊँचा रहा.
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अपने दुश्मन को भी दुश्मन नहीं समझा मैंने
जिन्दगी तू भी तो वाकिफ मेरे हालात से है .
मुझको दुनिया क़ी तवज्जो क़ी जरूरत क्या है
तू जो आगाह इलाही मेरे हालात से है .
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दकनी जी ने जिन्दगी के अनुभवों को जिस खूबसुरती के साथ शब्दों में पिरोया है,वो हर किसी के बस क़ी बात नहीं है. आप क़ी अधिकाँश रचनाएँ प्रेम और इश्क से सम्बंधित हैं.लेकिन उनकी तासीर दार्शनिक है,स्पस्ट है क़ि आप का सोचने -समझने का तरीका बड़ा ऊंचा है.प्रेम क्या है ? इसे तो वो भी नहीं बता सकता जो खुद प्रेम करता है. यह अनुभूति का विषय है.लेकिन इस दुनिया में हर कोई इतना खुशनसीब नहीं होता क़ि उसे प्रेम मिले.प्रेम इश्वर का आशीष है.प्रेम ही इश्वर है,और ईश्वर ही प्रेम है. प्रेम वासना से कंही आगे अपने आप को परे करते हुए दूसरों के लिए जीने का नाम है.प्रेम इंसानियत का आधार है.इसलिए प्रेम के भाव से भरा हुआ व्यक्ति उदार,करुनामय ,शांत चित्त,व्यापक सोचवाला और कर्तव्य परायण होता है.दकनी जी के हृदय में प्रेम का भाव है ,जो इस बात का प्रमाण है क़ि वे अपने विचारों में संकुचित नहीं हो सकते.
मेरी शुभ कामनाये दकनी जी के साथ हैं. आप लोंगो को भी यह पुस्तक जरूर पसंद आएगी ,इसका मुझे विश्वाश है.