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Wednesday, 10 March 2010

इस तरह दूर रहकर-----------

इस तरह दूर रहकर  तुमसे,
खुद से ही दूर हो  रहा  हूँ  .
कोई मजबूरी नहीं है फिर भी,
मैं बड़ा मजबूर हो रहा हूँ .

कोई कहता है पागल तो,
कोई समझता दीवाना है . 
जुडकर सब से भी मैं,
अब बेगाना हो रहा हूँ . 

राह का पत्थर हूँ मैं,
मुसीबत बन गया हूँ सब की.
सब के रास्ते से मैं बस,
मुसलसल किनारे हो रहा हूँ. 

अब कोई सपना कंहा है ?
 मुझे नींद कब आई है ?
 जागती आँखों से अब मैं,
 नींद का रिश्ता खोज रहा हूँ .
 

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 डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित  दिनांक 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज ...