Showing posts with label होकर औरत ही. Show all posts
Showing posts with label होकर औरत ही. Show all posts

Saturday, 18 April 2015

होकर औरत ही

धूप सी सुनहली 
गर्म और बिखरी हुई 
सर्दियों सी कपकपाती 
ठिठुरती और सिमटी हुई 
बारिश की बूंदों सी टिपटिपाती
बरसती और भिगोती हुई
रात सी ख़ामोश
दिन के कोलाहल से भरी हुई
सीधी और सरल सी
नरम गरम और पथराई हुई
ज़िन्दगी सी
उलझी हुई
तुम जो सुलझाती हो
वो गाँठें
ख़ुद को बांधे
इतने बंधनों में
इतने जतन से
सालों
शताब्दियों
सहस्त्राब्दियों से
तुम
औरत होकर भी
नहीं नहीं
तुम औरत हो
और
होकर औरत ही
तुम कर सकती हो
वह सब
जिनके होने से ही
होने का कुछ अर्थ है
अन्यथा
जो भी है
सब का सब
व्यर्थ है ।
----- मनीष

sample research synopsis

 Here’s a basic sample research synopsis format you can adapt, typically used for academic purposes like thesis proposals or project submiss...