'दोपहर  का भोजन` अमरकांत द्वारा लिखित  एक छोटी परंतु महत्वपूर्ण कहानी  है। यह कहानी विडम्बना और करूणा  की कहानी है। सिद्धेश्वरी नामक  स्त्री अपने पति मुंशी चंन्द्रिका  प्रसाद और तीन लड़कों (रामचन्द्र,  मोहन और प्रमोद) के साथ आर्थिक  तंगी में जीवन व्यतीत कर रही  होती है। तंगी इतनी की हर कोई  भरपेट खाना भी ना खा सके। पर  इस विडंबना को घर का हर सदस्य  एक दूसरे से छुपाता रहात है।  दोपहर के भोजन को खाते समय जब  माँ सिद्धेश्वरी बच्चों से  अधिक रोटी खाने को कहती है तो  वे बिगड़ जाते हैं। क्योंकि  उन्हें भी पता है कि उनके अधिक  खाने पर घर का कोई न कोई सदस्य  भूखा ही रह जायेगा। शायद अंत  के खानेवाली सिद्धेश्वरी ही।  इसलिए कोई भी भर पेट नहीं खाता,  पर भरपेट न खाने का कारण सभी  भी स्पष्ट नहीं करना चाहता।  इन सब के चलते अंत में सिद्धेश्वरी  के हिस्से में एक रोटी बचती  है। जिसमें से भी आधी को छोटे  बेटे प्रमोद के लिए रखकर आधी  ही खाती है।
      इस  तरह अपने जीवन के अभाव की विडम्बना  को यह परिवार अपने में ही समेटे  जिये जा रहा था। अमरकांत की  इस कहानी के संदर्भ में यदुनाथ  सिंह ने लिखा है कि, ''दोपहर का  भोजन` के सीधे-सपाट घटनाक्रम  में एक गृहस्वामिनी, सिद्धेश्वरी  के भय और दुख की जो अन्तर्धारा  प्रवाहित होती है वह आज के निम्न  मध्यमवर्गीय परिवार की जीवनचर्या  के मूल में प्रवाहित भय और दु:ख  की वह अन्तर्धारा है जिसमें  बहते हुए अनगिनत, परिवारों  के असंख्य प्राणी, एक दूसरे  से अपरिचित, अशांकित, वर्तमान  के अभावों से पूरी तरह टूटे,  भविष्य को लेकर दहशत से भरे  न केवल पारिवारिक स्तर पर बिखरते  बल्कि सामाजिक स्तर पर भावात्मक  दृष्टि से टूटते सम्बन्ध सूत्रों  को संदर्भित करते हैं। परंपरा  प्राप्त भावात्मक संबंध सूत्रों  और उनके माध्यम से बिखरने को  आ रहे ढाँचे को कायम रखने की  एक निष्फल दयनीय चेष्टा पूरे  संदर्भ को बेहद कारूणिक बना  जाती है।``5
      अमरकांत  की यह कहानी बहुत प्रसिद्ध  हुई। स्वयं अमरकांत भी यह माने  हैं कि यह कहानी उन्होंने पूरे  मनोयोग से लिखी है। कहानी छोटी  है। इस पर भी अमरकांत जी का कहना  है कि, इस कहानी में जितनी मौन  की जरूरत थी उतनी भाषा की नहीं।``6  हिंदी के अन्य समीक्षकों ने  भी अमरकांत की इस कहानी की बडी  प्रशंसा की है। 
 
