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Friday, 8 January 2010

अभिलाषा-११२

ना जाने कितने रिश्ते,
बनते और बिगड़ते हैं . 
पर सब सहता हस्ते-हस्ते,
छुपा के दिल का हाल प्रिये .

लाखों और हजारों बूंदे,
यद्यपि सागर में गिरती .
पर सीपी कि मोती तो,
बनती कोई खास प्रिये .  


                अभिलाषा-११२ -----------------------