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Thursday, 17 October 2013

तुम्हें भूलना

तुम्हें भूलना 

आस्था और विश्वास से 

उखड़ने जैसा है । 

सपनों और उम्मीद से 

नाता तोड़ने जैसा है । 

खुद को असीम विस्तार से 

रोकने जैसा है । 

खुश रहने की आदत से 

रूठने जैसा है ।