गम ही दे पर दे इन्तहा वो भी ,
खुशियों पे तेरा अब बस नहीं
चाहा है टूट कर जिसको
मिटा दे हस्ती गम दे तू ही
दर्द का मेला चाहूं तुझसे
तकलीफों का झोला चाहूं तुझसे
चाहत का क्या है वो तू कब का भूली
ग़मों का लम्हा चाहूं अब तुझसे
खुशियों पे तेरा अब बस नहीं
चाहा है टूट कर जिसको
मिटा दे हस्ती गम दे तू ही
दर्द का मेला चाहूं तुझसे
तकलीफों का झोला चाहूं तुझसे
चाहत का क्या है वो तू कब का भूली
ग़मों का लम्हा चाहूं अब तुझसे