16. बारिश में भीगना
बारिश
में भीगना
आलोचना
है
सख्त
और तर्कहीन
सामाजिक
रूढ़ियों की ।
खिलते, मचलते
और
गुनगुनाते गीतों की
गुंजाइश
और
है गुजारिश भी ।
आवारगी
की ख्वाइश
अनजान
रास्ते
और
मंजिल के नाम पर
बस
सफ़र ही सफ़र ।
उजाले
की दहलीज पर
अँधेरे
का दम तोड़ना
क्या
नहीं होता
तृप्त
होने के जैसा ?
बारिश
की बूँदें
किसी
की रहमत सी
जब
बरसती हैं
तब
तरसती आँखों में
कुछ
पूर्ण सा होता है ।
अधूरा
वह रास्ता
जो
किस्सों से भरा है
दरअसल
जीने की
कठिन
पर ज़रूरी शर्त है ।
एक
गुमराह पैग़म्बर
और
प्रेम में पगी
कोई
दो जोड़ी आँखें
मलंग
न हों
तो
क्या हों ?
एक
मासूम लड़की
नंगे
पाँव
निकल
पड़े चुपचाप
बूंदों
से लिपटने
ज़िन्दगी
इतनी सुंदर
सहज,सरल
और
प्यार से भरी
आख़िर
क्यों न हो ?