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Tuesday, 25 December 2018

1. मानवीय अर्थशास्त्र और स्व विस्तार ।


ख़ुद को
जानने, मनाने और समझने की
लंबी कोशिशों के बाद 
अपनी अंतरात्मा को
रखकर साक्षी
देता हूँ
स्वयं को विस्तार
व्योम में व्याप्त
पशु, पक्षी और प्रकृति को
समाज और संस्कृति को
मूल्यों और नीतियों से बुने
नियमों के ताने-बाने को
मानवता और करुणा की खोह में
समाहित हर व्यक्ति को
शामिल करता हूँ
अपने स्व के भाव में
फ़िर इस स्व के कल्याण
और इस जीवन की
उत्कृष्टता के प्रश्नों से
जूझते हुए
जीवन के लिए
अर्थ खोजता हूँ ।
इस खोजबीन भरी यात्रा में
सार्थक होता हूँ
क्योंकि मैं
स्व की निरर्थकता को
स्व के विस्तार में
सार्थक करता हूँ ।
उत्पाद की क़ीमत
और
उपभोक्ता के
सामाजिक मूल्यों के बीच
उपभोक्ता संस्कृति के
कितने ही नये
मापदंड तंय करता हूँ ।
संसाधनों की साधना
और
स्वयं के उपभोग में
सब का हिस्सा समाहित कर
सब के हित
और अंश तक
पहुँच कर
अमानवीय स्थितियों से
खुद को बचा पता हूँ ।
आवश्यकता से अधिक
उत्पादन और उपभोग के
पाप से
मानवीय अर्थशास्त्र को
आगाह करते हुए
तथाकथित विकास / प्रगति की
मानवीय अर्थवत्ता को
विचार का केंद्र बिंदु बनाता हूँ ।
यह सब
आप भी करें
अपने स्व की चेतना को
अपनी प्रकृति ओर संस्कृति तक
विस्तार देकर
और
विरोध के
हर स्वर को
सम्मान और स्थान देकर ।
--------- डॉ मनीष कुमार मिश्रा 

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 Here’s a basic sample research synopsis format you can adapt, typically used for academic purposes like thesis proposals or project submiss...