Thursday, 25 March 2010
तेरी आँखों में ---------------------
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तेरी आँखों में इतने सवाल क्यों है ?
कुछ नहीं किया तो मलाल क्यों है ?
मैं तो तुम्हारा कुछ भी नहीं तो फिर ,
दिल में अबतक मेरा ख़याल क्यों है ?
एक ही हैं राम और रहीम यारों,
इनके नाम पर फिर बवाल क्यों है ?
यह देश इस देश क़ी जनता का है
संसद में बैठे फिर ये दलाल क्यों है ?
Saturday, 13 March 2010
सिर्फ तर्क करे क्या हासिल हो ,
भावों में आत्मीयता शामिल हो ;
हितों के घर्षण से कब कौन बचा है ,
क्यूँ न अपनो का थोडा आकर्षण हो /
झूठे आडम्बर से क्या मिला है
थोड़ी मोहब्बत, थोडा त्याग,
थोड़ी जरूरत ,थोडा परमार्थ ,
क्यूँ न ये अपना जीवन दर्शन हो ,
सिर्फ तर्क करे क्या हासिल हो ,
भावों में आत्मीयता शामिल हो /
Friday, 12 March 2010
विचलित इच्छाएं है ,
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मोह का बंधन लगता प्यारा ,
माया ने हम सबको पाला ,
कब तक अंगुली पकड़ चलेगा राही,
अब तो पकड़ ले परमार्थ की डाली /
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Sunday, 7 March 2010
यादों के फूलों में चेहरा तेरा , 2
Tuesday, 2 March 2010
यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,
यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,
याद अब भी है तेरी धड़कन औ हसना तेरा ;
गुलाबी गालों की रंगत आखों में सपना सजा ,
पलकें आशा से खिली बातों में मोहब्बत घुली ,
महकते ख्वाबों की लचकन सुहानी रातों की धड़कन ;
वो अहसासों की तरन्नुम वो उमंगों की सरगम ,
नयनो की शिकायत आभासों के रेले ,
वो अरमानो की दुनिया सपनों के मेले ,
वो बंधन की राहें स्वच्छंदता के खेले ,
वो साँसों खुसबू ,बेखुदी में तुझे छुं ले ;
यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,
तू ही बता तुझे यार हम कैसे भूले ?
Sunday, 28 February 2010
आशा भरी पिचकारी थामे ,घुमू तेरे द्वार प्रिये ,
Thursday, 18 February 2010
नयनो से नयनो की बातें ,
Saturday, 13 February 2010
बात जिद की नहीं है यार मेरे ,
Friday, 12 February 2010
त्योहारों का ये देश पुराना /
Friday, 5 February 2010
खांसता बुडापा कांपता शरीर ,
Wednesday, 3 February 2010
तुझसे दुरी क्या मजबूरी ,
तुझसे दुरी क्या मजबूरी ,
Sunday, 17 January 2010
मै वही मोहब्बत वही शख्स हूँ /
अनजान नहीं हूँ ,पहचान नहीं हूँ ,
पर अब तेरा ध्यान नहीं हूँ ,
विरह विराट हूँ ,अव्यक्त अहसास हूँ ,
अब तेरा विभक्त विश्वास हूँ ,
प्यार मेरा न थमा है न थमेगा ,न घटा है न घटेगा ,
तेरे बाँहों में था जो सुख ,
मन उसे न भुला है न भूलेगा ,न उससे जी भरा है न भरेगा ,
आशक्त था आशक्त हूँ ,
तेरी बातों का अर्थ हूँ ,न बदला वो असमर्थ हूँ ,
तेरी बड़ती अभिलषा ने पीछे छोड़ा ,
नयी विधाओं से ना खुद को जोड़ा ,
जिसे देख चुपके से तू आंसूं पोंछे ,
मै वही मोहब्बत वही शख्स हूँ /
Friday, 15 January 2010
जब सांसों का उदभाव वही हो /
कहते हो वो कोई और वक़्त था ,
वो तो भावों में बहने का दौर था ,
तरुणाई के जज्बों से अब क्या लेना देना ,
वो तो बाँहों में खिलने का ठौर था /
मै इतिहास नहीं हूँ ,
इंतजार है , तकरार है ,
पर मै भूतकाल नहीं हूँ ,
प्यार चुकता नहीं ।
अंग संग जलाता है ,
समय कोई हो ,
दिल में बसता है /
Thursday, 14 January 2010
बस तेरे दिल में मेरी आगाज रहे /
Monday, 11 January 2010
हवा थम गयी /
हवा थम गयी ,
सुबह हो गयी ,
फुल हसना भूले ,
जिंदगी गम हो गयी ;
अहसास सीने में खोये ,
सूरज की रोशनी में रोये ,
चांदनी पिघला गयी अरमानो को ,
यादें ले गयी मुस्कानों को /
हवा का झोका आया ,
उससे तड़प भिजवाया ,
फूलों की खुसबू से चाहत कहलवाया ,
सूरज से पैगाम मैंने भेजा था ,
तरसती चांदनी से इमान मैंने भेजा था ,
जवाब का इंतजार इतना भरी था ,
सांसों का चलने से इंकार मुझपे हावी था ,
आगे की कहानी तुम सुनाना ऐ दोस्त ,
मेरी अंतिम साँस पे भी तेरा नाम हावी था /
Thursday, 7 January 2010
बड़ा बेईमान है चेहरा /
खुली हवाओं में सिमटता है,
सच का क्या कहें यारों,
दबाओगे जितना उतना ही उभरता है /
Monday, 4 January 2010
विरह की पीड़ा , मै अकेला ,धुल अंधड़ /
विरह की पीड़ा , मै अकेला ,धुल अंधड़ ,
रात नीरव ,चाँद निर्मल ,आसुओं का रण,
शाम रक्तिम ,निर्जन है मन ,यादें विहंगम ,
मोह इक व्यथा है ,
प्यार सुख की विधा है ,
लालसा बंधन की ,
चाह है ये ज्वलन की ,
क्यूँ हो विस्मित दुःख की दशा पे ,
क्यूँ हो चिंतित खुद की व्यथा पे ,
आग कब भागे जलन से ,
बर्फ कब पिघली ठिठुरन से ,
नीला अतुल आकाश खुला है ,
सागर विशाल भरा पड़ा है ,
समय निरंतर चल रहा है,
मृत्यु को जीतोगे कैसे ,
प्यार तो हर ओर पड़ा है /
विरह की पीड़ा , मै अकेला ,धुल अंधड़ ,
रात नीरव ,चाँद निर्मल ,आसुओं का रण,
शाम रक्तिम ,निर्जन है मन ,यादें विहंगम ,
Thursday, 31 December 2009
नूतन क्या है जो मै लायुं /
नूतन क्या है जो मै लायुं ,
क्या नूतन मै भाव सजायुं ;
नित्य सुबह को नयी है किरणे ,
उनमे क्या मै और मिलायुं ,
नूतन क्या है जो मै लायुं ,
मेरी निजता तुममे है खोयी ,
तेरे सपनों से प्रभुता है जोई ;
नित नए पलों का उदगम हरदम ,
कितने उसमे सपने मै बोयुं ,
नूतन क्या है जो मै लायुं ,
तुझको तकते आखें है सोयी ;
नया है हर पल ,हर छन नया है ,
नयी है शामें सुबह नयी है ,
नया महिना साल नया है ,
क्या नया नया मै जोडूँ यार पुराने ,
क्या मै बदलूं प्यार पुराने ;
नूतन क्या है जो मै लायुं ,
क्या नूतन मै भाव सजायुं ;
Tuesday, 29 December 2009
पथिक है बैठा राह तके है /
पथिक है बैठा राह तके है ,
हमसाया मिल जाये ,
जो सपनों को सींचे है ,
रुके पगों को क्या हासिल हो ,
जो हमराही मिल जाये ,
चलते रहना नियति हो जिसकी ,
क्यूँ राहों पे रुके है ;
पथिक है बैठा राह तके है ,
बड़ते कदमों संग दुनिया भागे ,
चलता प्रियतम दुनिया मांगे ,
क्यूँ वो इसको भूले है ;
पथिक है बैठा राह तके है ,
मंजिल पहले थमना कैसा ,
धारा संग भी बहना कैसा ,
मंजिल एक पड़ाव है ,
कुछ पल का ठहराव है ,
नयी चुनौती नयी मंजिले ,
नयी सड़क का बुलावा है ,
जो संग चला वो हम साया ,
जो साथ रहा वो ही है यारा ,
पथिक है बैठा राह तके है /
Saturday, 26 December 2009
अपना स्वार्थ और द्वेष बड़ा है /
आज समाज विभक्त है /
आडम्बर का चलन बड़ा है ,
गले लगाने का आचरण बड़ा है /
शंकाओं का धर्म बड़ा है ,
बातों में मिठास लिए ,
अविश्वास का करम बड़ा है /
मिलते हैं ऐसे जैसे अपना हो ,
भूले तुरंत जैसे सपना हो ,
खा लेंगे इक थाली में ,
जाती हमेशा याद आती है ,
नाम निकालेंगे देश का ,
पर झगडा होगा हमेशा प्रदेश का ,
सबसे छोटा देश यहाँ हैं ,
अपना स्वार्थ और द्वेष बड़ा है /
डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित
डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित दिनांक 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज ...
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अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...
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कथाकार अमरकांत : संवेदना और शिल्प कथाकार अमरकांत पर शोध प्रबंध अध्याय - 1 क) अमरकांत : संक्षिप्त जीवन वृत्त ...