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Monday 18 May 2020

कोरोना काल में कविता

9. वे जा रहे हैं ।

मजबूर, असहाय और साधनहीन
हजारों स्त्री,पुरष, वृद्ध और बच्चे
सब चले जा रहे हैं
जाने की सबसे त्रासद
क्रिया के रूप में
जीवन व्याकरण की
जटिल संरचना के रूप में ।

भाषा के पास
उनके संबोधन के लिए
सिर्फ़ कुछ सर्वनाम हैं
जो अभागे विशेषणों से
त्राहि त्राहि कर रहे हैं
और संवेदनाएं
शिलाधर्मी होकर
आकाशधर्मिता का 
स्वांग रच रही हैं ।

मनुष्यता की पूरी संकल्पना
कितनी खोखली निकली
सारी शिक्षा, सारा ज्ञान
सिर्फ़ और सिर्फ़
कूड़े का कागज़ी ढेर
और विकास के सारे वादे
कागज़ की नाव ।

ऐसे समय में
बचे रहने की संभावनाओं को
ग्रहण लगा हुआ है
किसी कोरोना वायरस के कारण ही नहीं
मरते सपनों
हारते संकल्पों
और निकम्मी व्यस्थाओं के
खूनी पंजों में
आत्मविश्वास हारते
सर्वहारा के
टूटकर बिखर जाने से
बचे रहने की संभावनाओं को
ग्रहण लगा हुआ है ।

      --------------- डॉ मनीष कुमार मिश्रा
                        कल्याण ।

Friday 1 January 2010

moments goes by .

moments goes by ,
events fades by ,
feelings remains ,
care and affection what it means ,

judgements may not come true ,
believe is hard to believe ,
but love is always there to see ।
cherish those who stand by you ,
implore the goodness who are ignored by you ,

have faith in your own divinity ,
be good to every one by your civility।
the year ahead may bring joy and happiness ,
the time ahead may bring pride in your achievement and humbleness।

All you wish ,
have growth and bliss ।
a life of content ,
full of good intent ।
of love and peace ,
of growth and ease।
WISH ALL A VERY HAPPY NEW YEAR .

Wednesday 24 December 2008

अभिलाषा के नये बंद

(५)

मेरी अन्तिम साँस की बेला

मत देना तुलसी दल माला

अपने ओठो का एक चुम्बन

ओठो पे देना मेरे प्रिये ।

(६)

शव यात्रा मेरी जब निकले

तब राम नाम की जय मत करना

प्रेम को कहना अन्तिम सच

प्रेमी कहना मुझे प्रिये ।

(७)

चिता सजी हो जब मेरी तो

मरघट पर तुम भी आना

आख़िर मेरे प्रिय स्वजनों मे

तुमसे बढ़कर कौन प्रिये