नयी राह चली है नयी मंजिल पानी ,
जीवन की है नयी रवानी ,
क्या पाया क्या खोया अब तक
बात रही सब वो बेमानी
नयी राह चली है नयी मंजिल पानी
गाँव हैं छोड़ा देश है छोड़ा
नया भेष है नया है डेरा
लोग नए हैं भाषा न्यारी
पर लगती है वो बोली प्यारी
नयी राह चली है नयी मजिल पानी
देखो क्या बनती है नयी कहानी
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Sunday 5 December 2010
Saturday 27 November 2010
हंस भी लेती है वो मन ही मन
शादी की चौदहवीं सालगिरह है
सुबह से वो व्यस्त रात तक है
पति आज भी खाली हाथ ही है
आज उसका उपवास भी है
कर्मिणी है धर्मिणी है
काम में अपने गुणी है
बात में मीठापन नहीं है
कर्कशा भी वो नहीं है
खीज के रह गयी है
पति से बहस हो गयी है
सालगिरह आंसूं में कटी है
सुबह फिर जिंदगी सर पे खड़ी है /
संघर्षमय जीवन रहा है
माता का वियोग सहा है
पति का व्यवहार सरल है
घर में उसका कब चला है
नौकरी वो कर रही है
बेटा औ बेटी की धनी वो
चिडचिडा जाती है उनपे
शरीर की सीमा पे खड़ी है
पाले में उसके कम भाग्य आया
पति ने भी कहाँ पैसे कमाया
कुढ़ रही मन ही मन वो
गुस्सा निकाले पति पे सब वो
जिंदगी से नहीं है हार मानी
उसके जीवट की भी है एक कहानी
सँवार रही है वो बच्चों का बचपन
हंस भी लेती है वो मन ही मन
सुबह से वो व्यस्त रात तक है
पति आज भी खाली हाथ ही है
आज उसका उपवास भी है
कर्मिणी है धर्मिणी है
काम में अपने गुणी है
बात में मीठापन नहीं है
कर्कशा भी वो नहीं है
खीज के रह गयी है
पति से बहस हो गयी है
सालगिरह आंसूं में कटी है
सुबह फिर जिंदगी सर पे खड़ी है /
संघर्षमय जीवन रहा है
माता का वियोग सहा है
पति का व्यवहार सरल है
घर में उसका कब चला है
नौकरी वो कर रही है
बेटा औ बेटी की धनी वो
चिडचिडा जाती है उनपे
शरीर की सीमा पे खड़ी है
पाले में उसके कम भाग्य आया
पति ने भी कहाँ पैसे कमाया
कुढ़ रही मन ही मन वो
गुस्सा निकाले पति पे सब वो
जिंदगी से नहीं है हार मानी
उसके जीवट की भी है एक कहानी
सँवार रही है वो बच्चों का बचपन
हंस भी लेती है वो मन ही मन
Sunday 21 November 2010
जिंदगी तेरी पगडण्डी फिर चल आया मै ,
जिंदगी तेरी पगडण्डी फिर चल आया मै , जिंदगी तेरी बंदगी फिर कर आया मै
खुदा बसता है जमीं पे यकीं न था
तेरी राहों में खुदा देख आया मै
तेरी मोहब्बत तो शामिल है मेरे रग रग में
तेरी चाहत असीम है मेरे हर पल में
तड़प गम ख़ुशी सब अमानत तेरी
जिंदगी जिन्दा हूँ मै तेरी जफ़ाओं में /
खुदा बसता है जमीं पे यकीं न था
तेरी राहों में खुदा देख आया मै
तेरी मोहब्बत तो शामिल है मेरे रग रग में
तेरी चाहत असीम है मेरे हर पल में
तड़प गम ख़ुशी सब अमानत तेरी
जिंदगी जिन्दा हूँ मै तेरी जफ़ाओं में /
Wednesday 3 November 2010
मुफलिसी ने जीना सिखा दिया
मुफलिसी ने जीना सिखा दिया
अपनो की भीड़ में अपना बता दिया /
नजर फेर बगल से निकल गया
यार था मेरा मेरी कीमत बता गया
घर में बहस थी चल रही कमरे में बैठा सुन रहा
न पूंछ कुछ मुझे मेरी अहमियत बता दिया
काम कोई होता सबको मेरी याद आती
काम होने पे कामचोर की तोहमत लगा दिया
मुफलिसी ने जीना सिखा दिया
अपनो की भीड़ में अपना बता दिया /
अपनो की भीड़ में अपना बता दिया /
नजर फेर बगल से निकल गया
यार था मेरा मेरी कीमत बता गया
घर में बहस थी चल रही कमरे में बैठा सुन रहा
न पूंछ कुछ मुझे मेरी अहमियत बता दिया
काम कोई होता सबको मेरी याद आती
काम होने पे कामचोर की तोहमत लगा दिया
मुफलिसी ने जीना सिखा दिया
अपनो की भीड़ में अपना बता दिया /
Thursday 21 October 2010
जिंदगी तू ही बता तू है क्या चाहती ,
जिंदगी तू ही बता तू है क्या चाहती ,
अहसास नहीं आभास नहीं मृतप्राय जीवन क्यूँ चाहती
बंधन नहीं हो उलझन नहीं हो क्या तू है मांगती
ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती ,
भाव में है प्यार लेकिन कहाँ मांग रहा इकरार तेरा
जिंदगी कटी अभाव से माँगा कब अहसान तेरा
झुरमुट हो उत्पीडन का या घोर समुद्र हो जीवन का
कब प्यार है छूटा श्रद्धा छोड़ी कब रास्ता छोड़ा प्रियतम का
ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती ,
ना रुठती ना है मनाती ना राह करती साथ का
ना विफरती ना अकड़ती साथ करती हमेशा दुस्वार का
ना सिमटती ना बहकती ना कोई अधिकार छोड़े प्यार का
दूरियां भाती नहीं नजदीकियां जमती नहीं क्या कहे इस साथ का
ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती
अहसास नहीं आभास नहीं मृतप्राय जीवन क्यूँ चाहती
बंधन नहीं हो उलझन नहीं हो क्या तू है मांगती
ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती ,
भाव में है प्यार लेकिन कहाँ मांग रहा इकरार तेरा
जिंदगी कटी अभाव से माँगा कब अहसान तेरा
झुरमुट हो उत्पीडन का या घोर समुद्र हो जीवन का
कब प्यार है छूटा श्रद्धा छोड़ी कब रास्ता छोड़ा प्रियतम का
ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती ,
ना रुठती ना है मनाती ना राह करती साथ का
ना विफरती ना अकड़ती साथ करती हमेशा दुस्वार का
ना सिमटती ना बहकती ना कोई अधिकार छोड़े प्यार का
दूरियां भाती नहीं नजदीकियां जमती नहीं क्या कहे इस साथ का
ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती
Monday 18 October 2010
सहमे पत्ते खिले फूल हैं
सहमे पत्ते खिले फूल हैं
महका गुलशन मौसम नम
खिलता चेहरा आखें रिक्त
रुंधा गला बातों मे सख्त
थाली सजी पूजा के फूल
सुखा पत्ता पैर की धुल
खुशियों का मौसम गम की चिंगारी
सीने में सिमटी बाहें वो प्यारी
सहमे पत्ते खिले फूल हैं
महका गुलशन मौसम नम
महका गुलशन मौसम नम
खिलता चेहरा आखें रिक्त
रुंधा गला बातों मे सख्त
थाली सजी पूजा के फूल
सुखा पत्ता पैर की धुल
खुशियों का मौसम गम की चिंगारी
सीने में सिमटी बाहें वो प्यारी
सहमे पत्ते खिले फूल हैं
महका गुलशन मौसम नम
Friday 17 September 2010
सिमटते दायरों बिखरते संबंधों में भटकाव
सिमटते दायरों बिखरते संबंधों में भटकाव
सहमी अपेक्षा उच्श्रीन्खल इच्छा में उलझाव
बदलते स्वरुप रिश्तों में समाहित अधिकार का
बड़ता प्रकोप कुछ रिश्तों के नए विकार का
मान्यताएं टूटती स्व को पोषती नए विचार
मै का प्रहार हम का घटता प्रचार
नयी भागती दुनिया रीती नयी
पल के रिश्ते पल की प्रीती नयी
सहमी अपेक्षा उच्श्रीन्खल इच्छा में उलझाव
बदलते स्वरुप रिश्तों में समाहित अधिकार का
बड़ता प्रकोप कुछ रिश्तों के नए विकार का
मान्यताएं टूटती स्व को पोषती नए विचार
मै का प्रहार हम का घटता प्रचार
नयी भागती दुनिया रीती नयी
पल के रिश्ते पल की प्रीती नयी
Tuesday 14 September 2010
कौतुहल है उत्सुकता है और बड़ी भावुकता है
कौतुहल है उत्सुकता है और बड़ी भावुकता है
मिलेंगे किस अभिवादन से कितनी ही आतुरता है
प्रीती दिखेगी प्यार दिखेगा या उलझा संवाद दिखेगा
प्यार मिले तिरस्कार मिले पर ना व्यवहारिक व्यवहार मिले
कौतुहल है उत्सुकता है और बड़ी भावुकता है
मिलेंगे किस अभिवादन से कितनी ही आतुरता है
मिलेंगे किस अभिवादन से कितनी ही आतुरता है
प्रीती दिखेगी प्यार दिखेगा या उलझा संवाद दिखेगा
प्यार मिले तिरस्कार मिले पर ना व्यवहारिक व्यवहार मिले
कौतुहल है उत्सुकता है और बड़ी भावुकता है
मिलेंगे किस अभिवादन से कितनी ही आतुरता है
Friday 10 September 2010
काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
राह में कांटे सजे या हो फूल बिखरे पैरों तले
मंजिल तक पहुँचाना नहीं ख्वाब जीना चाहता हूँ
काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
इशारे मौसम के रहे हों या हों वो महबूब तेरे
ताका किया अब तक उन्हें अब छूना चाहता हूँ
काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
अरमान सजोये या मोहब्बत को यादों में पिरोये अब तक
गले लग जा अब तो तुझे अब जीना चाहता हूँ
काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
राह में कांटे सजे या हो फूल बिखरे पैरों तले
मंजिल तक पहुँचाना नहीं ख्वाब जीना चाहता हूँ
काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
इशारे मौसम के रहे हों या हों वो महबूब तेरे
ताका किया अब तक उन्हें अब छूना चाहता हूँ
काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
अरमान सजोये या मोहब्बत को यादों में पिरोये अब तक
गले लग जा अब तो तुझे अब जीना चाहता हूँ
काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
Tuesday 7 September 2010
दिल है बेक़रार किसी का
दिल है बेक़रार किसी का
मन रहा पुकार किसी का
कोई है मशगूल अपनी दिनचर्या में
कोई कर रहा इंतजार किसी का /
मन रहा पुकार किसी का
कोई है मशगूल अपनी दिनचर्या में
कोई कर रहा इंतजार किसी का /
Saturday 31 July 2010
इम्तहान लेती रही जिंदगी मेरी
इम्तहान लेती रही जिंदगी मेरी
यूँ ही चलती रही जिदगी मेरी
कमियाँ तलाशते रहे लोग अपने
असफलताएं सजाती रही मेरी जिंदगी
व्यवहार बदलता रहा हर मोड़ पे लोंगों का
मेरी मुसीबतों पे मुस्कराती रही मेरी जिंदगी
हर ठोकर के बाद लंगडाती रही मेरी जिंदगी
अपनो को यूँ सुकूँ पहुंचाती रही मेरी जिंदगी
कोई मरहम लगता नमक का कोई तिरस्कार की बातें
कोई अहसान की दवा देता कोई दया की बातें
कोई मुस्कराता हर तकलीफ पे कोई खिलखिलाता हर चोट पे
ऐसे कितनो को सुख पहुंचाती रही मेरी जिंदगी
यूँ ही चलती रही जिदगी मेरी
कमियाँ तलाशते रहे लोग अपने
असफलताएं सजाती रही मेरी जिंदगी
व्यवहार बदलता रहा हर मोड़ पे लोंगों का
मेरी मुसीबतों पे मुस्कराती रही मेरी जिंदगी
हर ठोकर के बाद लंगडाती रही मेरी जिंदगी
अपनो को यूँ सुकूँ पहुंचाती रही मेरी जिंदगी
कोई मरहम लगता नमक का कोई तिरस्कार की बातें
कोई अहसान की दवा देता कोई दया की बातें
कोई मुस्कराता हर तकलीफ पे कोई खिलखिलाता हर चोट पे
ऐसे कितनो को सुख पहुंचाती रही मेरी जिंदगी
Saturday 13 March 2010
सिर्फ तर्क करे क्या हासिल हो ,
सिर्फ तर्क करे क्या हासिल हो ,
भावों में आत्मीयता शामिल हो ;
हितों के घर्षण से कब कौन बचा है ,
क्यूँ न अपनो का थोडा आकर्षण हो /
झूठे आडम्बर से क्या मिला है
थोड़ी मोहब्बत, थोडा त्याग,
थोड़ी जरूरत ,थोडा परमार्थ ,
क्यूँ न ये अपना जीवन दर्शन हो ,
सिर्फ तर्क करे क्या हासिल हो ,
भावों में आत्मीयता शामिल हो /
भावों में आत्मीयता शामिल हो ;
हितों के घर्षण से कब कौन बचा है ,
क्यूँ न अपनो का थोडा आकर्षण हो /
झूठे आडम्बर से क्या मिला है
थोड़ी मोहब्बत, थोडा त्याग,
थोड़ी जरूरत ,थोडा परमार्थ ,
क्यूँ न ये अपना जीवन दर्शन हो ,
सिर्फ तर्क करे क्या हासिल हो ,
भावों में आत्मीयता शामिल हो /
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