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Sunday, 7 March 2010

पर दिल में ना रह पाए .

जो कहना था पहले ,
वो अब तक ना कह पाए .
संग-संग रहते थे घर में,
पर दिल में ना रह पाए .  

 सात जन्म का वादा करके,
 सात कदम ना चल पाए .
प्यार बना समझौता कैसे ?
ये बात  समझ ना पाए.

साथ सफ़र में दोनों थे पर , 
साथी ना बन पाए .
अंदर ही अंदर घुट कर,
दो-चार कदम चल पाए. 

जिसके बिन जीना मुश्किल था,
साथ उसी के ना जी पाए .
इश्क क़ी राह पे चल  के भी, 
हम इश्क समझ ना पाए . 
                        
                     जो कहना था ----------------------------
 (इस गीत क़ी पहली कड़ी भाई सुनील सावरा ने डी थी. वो इसे पूरा करना चाहते थे. मैंने अपनी तरफ से एक कोसिस क़ी है.शायद उन्हें पसंद आये.)