चादनी रात मे अकेले टहलना मत
मुझे याद कर के तुम तड़पना मत ।
लग जायेगी यकीनन तुम्हे नजर ,
बेनकाब घर से कंही निकलना मत ।
अब जब कि मिल गये हो मुझसे,
एक पल के लिये भी बिछड़ना मत ।
अपने दिल कि हर बात कह देना,
बिना कहे अंदर ही अंदर सुलगना मत ।
जिंदगी को ऊपर ही ऊपर जी लो,
अधिक गहराई मे इसकी उतरना मत ।
Sunday, 19 April 2009
चांदनी रात मे अकेले ---------------------------------
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ग़ज़ल,
हिन्दी कविता hindi poetry
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