आज फ़िर एक बार
पूछूँ तुमसे
वही एक बात जो
न जाने कितनी बार
पूछ चुका हूँ
तुमसे ही ।
अब मेरे कहने से पहले
तुम समझ जाती हो
और कहती हो
कि जब जानती हूँ
क्या पूछोगे
तो क्यों पूछते हो ?
जब कि
बता चुकी हूँ
तुम्हें सबकुछ
साफ़ - साफ़ ।
जिस बात पर
तुम या तो चुप हो
या फ़िर अड़ी हो
वही बात जो
तुम्हारे इनकार के साथ
शायद रुकी हुई है
या
अब भी उम्मीद में है ।
जिस बात को लेकर
बैठा रहता हूँ
बनारस के घाटों और
मंदिरोंकी सीढियों पर
घंटों अकेले
जागती रातों में
नींद के सपनों के साथ
उसी एक बात पर
बिताते
दिन-महीने-साल ।
जिसके संकट को
हरने की अर्जी
प्रलंबित है
संकटमोचन और
बाबा विश्वनाथ के
साथ-साथ
न जाने कितने
दरबारों में ।
तुमसे कह तो दिया
लेकिन
कह नहीं पाया कि
जो कहा मैंने
वह कोई
औपचारिकता नहीं थी ।
तुम सुना चुके हो
अपना निर्णय
फ़िर भी जाने क्यों
लगता है कि
तुमसे पूछूँ
फ़िर से
वही एक बात ।
यह फ़िर एक बार
का पूछना
बचा लेता है मुझे
मेरे सारे सपनों को
और इसीलिए
आज फ़िर
सोच रहा हूँ कि
पूछ लूँ तुमसे
फ़िर वही एक बात ।
B H U