राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कार्यशाला
प्रिय महानुभाव,
यह सूचित करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है कि
हिन्दी विभाग, आगरा कॉलेज, आगरा
‘विश्व विद्यालय अनुदान आयोग’ के
सौजन्य से ‘श्रमिक जन-विसर्जन, जन
भाषायें और भाषा विकास’ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी और
कार्यशाला का आयोजन कर रहा है। हिन्दुस्तान की तारीख में यह बात दर्ज है कि लोगों
का हिन्दुस्तान आने का सिलसिला बहुत पुराना और लम्बे समय तक चलने वाला रहा है।
कितनी की भाषाओं, संस्कृतियों और स्मृतियों के साथ लोग
यहाँ आये और अन्य भाषाओं, संस्कृतियों के साथ सम्पर्क- सम्मिलन
की तरह तरह की प्रक्रियाओं के अधीन नई भाषा- संस्कृतियों के सूत्रधार बने। आज जो
हिन्दी भाषा और संस्कृति हमारे सरोकारों का विषय है वह ऐसी ही कथाओं की देन है।
जन-विसर्जन लोगों के मिलने- बिछड़ने का सांस्कृतिक पक्ष है जिसका फैलाव लोगों के
पहली बार के प्राकृतिक कारकों से बिखरने से लेकर वर्तमान वैश्विक दुनियां के
श्रमिक समूहों तक जाता है। इतिहास के तमाम पक्ष बारबार ऐसे जन-विसर्जनों पर वज़न
देते आते हैं जिन्होंने सदियों के इतिहास को प्रभावित किया. भाषा की तमाम अनसुलझी
गुत्थियाँ जो कि इतिहास के तमाम पहलुओं पर नई रोशनी डालने में सक्षम होने की
सम्भावना से भरी हैं, ऐसे जन-विसर्जनों के भीतर झाँकने को
आवश्यक शर्त के रूप में हमारे सामने रखती हैं.
जन विसर्जन का भी एक विशेषीकृत
पक्ष श्रमिक जन- विसर्जन है. भाषा किसी भी सभ्यता के इतिहास को जानने का सबसे
प्रामाणिक आधार है. श्रमिक जनों की भाषा में अभी भी भाषा के आदिम तथ्य मिलने की
सम्भावना अपेक्षाकृत रूप से अधिक है. जन-विसर्जनों ने इस आदिमता को बिल्कुल अलग
तरह से प्रभावित किया है. श्रमिक जनों की भाषा से यह आदिमता चली नहीं गयी है, वरन्
इसने आधुनिक भाषाओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
हिन्दी भाषा का वर्तमान भाषाई रूप हिन्दी भाषी
क्षेत्र की भिन्न-भिन्न बोलियों और भाषाओं के साथ किस सम्बन्ध संरचना में खड़ा है
यह एक विचारणीय मुद्दा रहा है और आज भी है. इन भिन्न-भिन्न बोलियों और भाषाओं के
बोलने वाले श्रमिक-जन जीवन संघर्ष और विकास प्रक्रियाओं के दबाव में हमेशा इन
क्षेत्रों से बाहर जाते और धकेले जाते रहे हैं. वे अपनी भाषा, अपनी
संस्कृति साथ लेकर जाते हैं और एक मेजबान
(host) भाषा और संस्कृति के साथ समंजन प्रक्रिया से
गुजरते है, परिणामतः एक नई भाषा जन्म लेती है और
कई माइनों में यह सत्ता के केन्द्रों की भाषा ही होती है. हिन्दी के विकास में इस
प्रक्रिया का बड़ा और महत्वपूर्ण योगदान है.
इस कार्यशाला का उद्देश्य हिन्दी क्षेत्र की
भिन्न भिन्न बोलियों और भाषाओं से हुई जन-विसर्जन की पूरी प्रक्रिया को एक व्यापक
धरातल पर सामने लाना, भाषाई तथ्यों को सभी जन भाषाओं के
परिप्रेक्ष्य में एक मंच पर सामने रखते हुए हिन्दी के विकास के कुछ महत्वपूर्ण
आयामों को शेयर करना है ताकि एक अधिक स्पष्ट तस्वीर सामने आ सके. कोई भी भाषा अपने
इतिहास में तमाम ऐसे सन्दर्भों को समाहित रखती है कि उनके सामने आने से समाज, संस्कृति
और इतिहास के बारे पहले से निर्धारित धारणाओं में कई बार बड़े परिवर्तन की दरकार
कायम हो जाती है. इस कार्यशाला के पीछे जो प्राक्कल्पना काम कर रही है वह यह है कि
यदि हिन्दी क्षेत्र की भिन्न भिन्न बोलियों और भाषाओं के विसर्जन पक्ष से निकलने
वाले तमाम तथ्यों को एक मंच पर सामने रखा जाय तो निश्चत रूप से भाषा के विकास के
सम्बन्ध में जो निर्णय हम लेने की स्थिति में होंगे वे महत्वपूर्ण और नये होंगे.
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी और कार्यशाला में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए आप सादर आमन्त्रित हैं।
इस संगोष्ठी और कार्यशाला में निम्न उपविषयों
का समावेश किया गया है
श्रमिक-जन विसर्जन और भाषा विकास
जन-विसर्जनः साहित्य, स्मृति
और इतिहास
जन-विसर्जनः परिघटना और प्रारूप
जन-विसर्जनः भाषा और संस्कृति का परिप्रेक्ष्य
विस्थापन, सांस्कृतिक
सम्पर्क और भाषाई सम्भावनायें-
मानसिक विस्थापन और सांस्कृतिक प्रश्न
वैश्विक विस्थापन, बहुसांस्कृतिक
केन्द्र और भाषा विकास
भाषाई भिन्नतायें और राष्ट्र का विकास
निजभाषाभिमान, विभाषा
और वैश्विकव्यवस्था
मानकीकरण, जनअधिकार
और भाषा का विकास
लोकभाषा, जन
भाषा और साहित्य भाषा
हिन्दी क्षेत्र से राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय
जन विसर्जन और हिन्दी भाषा का विकास
आप्रवासी भारतीय श्रमिक जन और हिन्दी के
विविधरूप
जन भाषायें, श्रमिक
जन विसर्जन और आधुनिक हिन्दी भाषा का विकास (ब्रज भाषा, बुन्देली, बाँगरू, भोजपुरी,अवधी,
छत्तीसगढ़ी)
दलितों की भाषा- स्वरूप और बदलाव
हिन्दी भाषा और जन जातीय भाषायें
भाषाई अस्मिता, साम्प्रदायिकता
और जन-विसर्जन
आधुनिक भारत के श्रमिक संकेन्द्रण केन्द्र और
हिन्दी भाषा
शहरीकरण और हिन्दी भाषा के विविध रूप
स्त्री श्रमिक भाषा का सन्दर्भ
महत्वपूर्ण तिथियाँ
पूर्ण शोध पत्र जमा करने की तिथि- 15
फरवरी 2012
पंजीकरण की अन्तिम तिथि- 05
मार्च 2012
पंजीकरण
संकाय सदस्य- 800
रु.
शोधार्थी- 400
रु.
तत्काल पंजीकरण शुल्क
संकाय सदस्य 1000
रु.
शोधार्थी 500
रु.
(तत्काल
पंजीकरण केवल सहभागिता के लिए ही सम्भव हो सकेगा।)
आयोजन स्थल
ऑडीटोरियम हॉल,
आगरा कॉलेज, आगरा
Organizing secretary
Dr. Bhoopal Singh
Assistant Professor,
Hindi Department, Agra College, Agra
Mob. (+91)9557000177
Contact: