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Wednesday, 9 September 2009

भावनावों का अत्याचार भी खूब है ;

भावनावों का अत्याचार भी खूब है ;
कभी आंसू तो कभी महबूब है ;
कभी अपनो का कारवां ,
कभी आकंछावों की भूख है ;
कभी हलके इनकार पे आखें नम हो गई ;
कभी इकरार पे भी आखें शबनम हो गई ;
कभी दूरियों में भी नजदीकी का अहसास है ;
कभी नजदीकियों में भी दुरी का आभास है ;
कभी दौड़ के लिपटा पर आखें सजल न हुईं;
कभी आखों की आखों की बातों से वो नम हो गई ;

डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित

 डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित  दिनांक 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज ...