जो क़िस्मत मेहरबान थी वह रूठ गई
गोया आखरी उम्मीद हांथ से छूट गई।
मैं जिसे जिंदगी समझ बैठा था अपनी
वो ख़्वाब थी जो नींद के साथ टूट गई।
सच कहूं तो बात बस इतनी सी थी कि
मिट्टी बड़ी कच्ची थी सो गागर फूट गई।
हां उसे देखा था बस एक नज़र भरकर
और वह एक नज़र से सबकुछ लूट गई ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा