- राष्ट्र के विकास में राष्ट्रभाषा हिंदी का योगदान
अगर बात संवैधानिक दृष्टि कि हो तो हाँ यह सही है कि -हिंदी अभी तक कानूनी और संवैधानिक दृष्टि से हिंदी इस देश की राष्ट्र भाषा नहीं बन पायी है . एक सपना जरूर हमने देखा था,संविधान के साथ. लेकिन आपसी झगड़ों में अफ़साने ,अफ़साने ही रह गए. राष्ट्रभाषा तो दूर हिंदी सही मायनों में अभी तक राजभाषा भी नहीं बन पायी है. राजभाषा के रूप में अंग्रेजी अभी तक हिंदी के समानांतर चल रही है. बल्कि व्यव्हारिक दृष्टि से तो हिंदी को बहुत पीछे छोड़ के आगे निकल चुकी है . जिम्मेदार कौन हैं ?
निश्चित तौर पे जिम्मेदार हम हैं. हमारी सरकार है. अनेकता में एकता तो ठीक है लेकिन इस एकता में जो अनेकता है उसने बहुत से ऐसे सवाल पीछे छोड़े हैं,जिन पे हम बस मुह छुपा सकते है या शर्मिंदा हो सकते हैं. राष्ट्रभाषा हिंदी का सवाल भी ऐसे ही कुछ सवालों में से एक है .लेकिन अब वक्त आ गया है की हम इन सवालों का मुकाबला करे और आज और अभी से अपनी हिंदी को पूरे सम्मान के साथ राष्ट्र भाषा बनाने का संकल्प करे . अगर व्यवहारिक और मौखिक रूप में हिंदी को राष्ट्रभाषा मान लिया जाता है तो लिखित रूप में क्यों नहीं ?
यह लिखते हुए मैं अच्छे से समझ रहा हूँ की जो भी सरकार इस दिशा में पहल करे गी वो तीव्र राजनैतिक विरोध को झेलेगी . आज प्रांतवाद और भाषावाद जिस तरह से अपने पैर पसार रहा है, वो किसी से छुपा नहीं है . केंद्र में बैठी सरकार भी इन मुद्दों पे एकदम असहाय सा महसूश करती है . मुंबई की खबरे इस बात का जीवंत उदाहरण हैं . लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं हो सकता कि सरकार चुप-चाप बैठी रहे . वैसे ही जैसे वो पिछले ६३ सालों से बैठी है . लेकिन इस सरकार को जगाने का काम हम हिंदी की रोटी खाने वालों को करनी होगी .हमे हिंदी का लाल बनना है, दलाल नहीं .वो काम करने वालों की देश में कोई कमी नहीं है. आप सभी ये सब जानते हैं ,मैं इस बात की तरफ नहीं मुड़ना चाहता . वेसे एक बात यह भी सच है क़ि---
आज के जमाने में,ईमानदार वही है
जिसे बईमानी का अवसर नहीं मिला .
आशा है आप इस तरह के ईमानदार नहीं हैं . और अगर हैं तो माफ़ कीजिये आप से कुछ भी नहीं होने वाला . यंहा तो जरूरत उसकी है जो घर फूंके आपना वो चले हमारे साथ .तो कुल मिला के हमे निःस्वार्थ भाव से हिंदी के सम्मान के लिए लड़ना होगा . क्या आप तैयार हैं ?