किनारों पे टूट जाती है हर लहर तनहा
जाने किसको तलाशती हर पहर तनहा ।
बिन सीता,राम भोग रहे हैं वनवास
कितना मुश्किल है यह सफ़र तनहा ।
अपनी छोड़ हमने सब की सोची
उधर वो,रहे इधर हम भी तनहा ।
ख्वाब कैसे सजे कोई आँखों में
तेरे बाद अब तक रही नजर तनहा ।
कोई मिले तो उसका हाँथ थाम लेना
जिंदगी न होगी इसकदर बसर तनहा ।
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