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Thursday, 6 August 2009

बेटियाँ और भारतीय समाज -2




जैसा की मैंने अपने पहले पोस्ट मे बताया की लड़कियों पे जो सामजिक बंधन लगाए गए उनके पीछे उस समय की परिस्थितिया थीफ़िर जब अंग्रेजो का शासन शुरू हुआ तो, उन्होंने अपने मतलब के लिए भारतीयों को पढाना -लिखाना शुरू कियाआधुनिक ज्ञान विज्ञान से भारत का युवा वर्ग परचित हुआउसने शिक्षा के महत्त्व को समझाऔर हम जानते हैं की सन १९०० के बाद से ही सामजिक सुधार आन्दोलन शुरू हो गएराजाराम मोहनराय ,महात्मा फूले,स्वामी दयानंद सरस्वती कुछ ऐसे ही समाज सुधारक थेउन्होंने जिन बातों को ले कर आन्दोलन किए ,उनमे कुछ प्रमुख इस प्रकार के है -


  1. विधवा विवाह

  2. बाल विवाह

  3. अंतरजातीय विवाह

  4. अनमेल विवाह

  5. जातिगत संकीर्णता

  6. अंग्रेजी शिक्षा

  7. दलित शिक्षा

  8. दलितोधार

  9. सती प्रथा

  10. दहेज प्रथा


इसी तरह की कई सामजिक बुराइयों को ले कर आन्दोलन चलाए गएशिक्षा के प्रचार -प्रसार के कारण पढ़ा -लिखा नया मध्यम वर्ग अस्तित्व मे आयालड़कियों ने भी शिक्षा ग्रहण कीवे अपनी अधिकारों से परिचित होने लगीअपने अधिकारों के लिए लड़ने लगीअपनी पसंद -नापसंद जाहिर करने लगीअपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देने लगीयह सब भारत की नई तस्वीर थीदो पीढियों के बीच संघर्ष की नई स्थिती थीसरकार नारा दे रही थी की -बेटा -बेटी एक समान , शिक्षा सब का है अधिकारलेकिन पुराने लोग इस बात को पचा नही पा रहे थेयह स्थिती अब भी इस देश मे मौजूद हैयह अलग बात है की इसी देश की इंदिरा गांधी,सरोजनी नायडू ,कल्पना चावला ,पी.टी.उषा,सानिया मिर्जा,महामहिम प्रतिभा पाटिल और किरण बेदी जैसी बेटियों ने पूरी दुनिया मे देश का नाम ऊँचा किया है


समय बदल रहा है ,और हमारी सोच भी बदल रही हैइस देश मे राखी सावंत जैसी लडकियां फ़िर से स्वयम्वर रचने लगी हैं ,वो भी डंके की चोट पेआज लडकियां लड़को के साथ कंधे से कन्धा मिला कर काम कर रही हैंबाजारवाद की बदली हुई परिस्थितियों मे गृहस्थी की गाड़ी पुरूष के साथ मिल के चला रही हैं


आवस्यकता सिर्फ़ इस बात की है की हम पूरी इमानदारी के साथ उनकी आगे बढ़ने मे सहायता करेपुरानी दकियानूसी मान्यताओं को भूलकर सम सामयिक परिस्थितियों के अनुकूल अपनी विचार धारा मे परिवर्तन लायेंहाल ही मे शिक्षा के अधिकार का बिल संसद से पारित हुआ ,यह एक अच्छी पहल हैमहिलाओ के लिए ३३ % आरक्षण वाला विधेयक भी जल्द ही पास हो जाना चाहिए


इस देश की बेटियाँ इस देश के सुनहरे भविष्य का आधार हैंअगर भारत को २१वी सदी मे विश्व की एक महाशक्ति के रूप मे उभरना है तो उसे अपनी बेटियों को शिक्षित,आत्मनिर्भर,खुशहाल ओर हर तरह से सक्षम बनाना ही होगा


Wednesday, 5 August 2009

बेटियाँ और भारतीय समाज




भारत देश मे लड़कियों को हमेशा ही दोयम दर्जे का व्यवहार झेलना पड़ा है ,यह सच नही है । कम से कम हमारे वेद-पुराण तो यही कहते हैं ।

यह भारत देश ही है जन्हा स्त्री को देवी मानकर उसकी पूजा सदियों से की जाती है । कहा जाता है की -"जन्हा स्त्रियों का सम्मान होता है ,वन्ही देवता निवास करते हैं । '' बेटियों को घर की लक्ष्मी माना जाता रहा है । उन्हे अपना वर चुनने का अधिकार मिलता रहा । गार्गी और शबरी जैसी स्त्रियों को हम आदि ऋषि माता के रूप मे याद करते हैं । परिवार नामक भारतीय समाज पद्धति मे स्त्रियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है ।
लेकिन धर्म और दर्शन का यह देश लंबे समय तक विदेशी आक्रमण से जूझता रहा ,साथ ही साथ नवीन संस्कृतियों के साथ समन्वय की नीति अपनाता रहा । सामजिक ,आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों ने इस देश मे कई परिवर्तन लाये । जिनमे से एक प्रमुख परिवर्तन रहा स्त्रियों के प्रति सामजिक दृष्टिकोण ।
वह समय जब भारतीय समाज अस्थिरता के दौर से गुजर रहा होगा तो स्त्रियों की सुरक्षा उसकी एक प्रमुख चिंता रही होगी । इसी कारण उसने उनके उपर कई तरह के प्रतिबन्ध लगाए होंगे । जैसे की --

१। स्त्रियों को घर की चार दीवारी मे ही रहने के लिए कहना ।

२। उनका बाहर निकलना बंद करना ।

३। उन्हे शिक्षा से वंचित करना ।