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Monday, 3 September 2012

मानव तस्करी

    भारत देश में बाल अपराध से संबंधित जिस तरह के आंकड़े और जैसी खबरे लगातार सामने आ रही हैं वे धर्म और दर्शन की इस धरा के लिए अभिशाप हैं । नैतिकता का पतन , आर्थिक विषमता और गरीबी के साथ-साथ विक्षिप्त मानसिकता और भोग –विलाश पूर्ण जीवन शैली  इस अपराध के मूल में है । किशोर उम्र की लड़कियों की हालत तो अधिक चिंतनीय है । गरीब और मासूम किशोर लड़कियों को धोखे से देह-व्यापार की मंडी में चंद रुपयों के लिए झोंक दिया जा रहा है, तो दूसरी तरफ किशोर लड़कियों को एक ऐसा बड़ा वर्ग भी है जो शहरों में रहते हुए कम उम्र और फैशन की चका-चौंध में सारी नैतिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर लगभग अपनी मर्जी से देह व्यापार के इस दलदल में फसती जा रहीं हैं।
        शहरों की तेज रफ्तार जिंदगी में माँ-बाप भी जीविकोपार्जन के संसाधन जुटाने में ही अपना काफी समय खर्च करने को मजबूर हैं। बच्चो की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए शायद वे यह भूल जाते हैं कि बच्चों के लिए उनका स्नेह,दुलार और मार्गदर्शन भी बहुत जरूरी है । अपनी जरूरतों और अपनी मजबूरियों के बीच पिस रहे माँ-बाप चाह कर भी अधिक कुछ नहीं कर पाते। संयुक्त परिवार की संकल्पना शहरों के आर्थिक ढांचे के बिलकुल अनुकूल नहीं हैं,ऐसे में परिस्थितियाँ और विकट होती जा रही हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि संयुक्त परिवारों में सबकुछ ठीक रहता है । अध्ययन और खबरें बताती हैं कि लड़कियों का किशोरावस्था में अधिकांश बार शोषण पारिवारिक सदस्यों या रिशतेदारों द्वारा ही होता है । ऐसे मामलों में सबसे बड़ी तकलीफ तो यह होती है कि माँ-बाप लोक-लाज और पारिवारिक प्रतिष्ठा इत्यादि बातों की चिंता करते हुए ऐसे मामलों को या तो नजर अंदाज करते हैं या चुप बैठ जाते हैं ।
मानवीय सम्मान और अधिकारों के ऊपर मानव तस्करी एक कलंक की तरह है । संगठित अपराध के माध्यम से मासूम,भोले और आर्थिक रूप से विपन्न लोगों का शोषण लगातार हो रहा है । विशेष तौर पे किशोर लड़कियों और औरतों की स्थिति अधिक चिंताजनक है । विकल्पहीन और चयनहीन अवस्था में वे अपना जीवन जीने के लिए मजबूर की जाती हैं । लाचार और असहाय लड़कियों और औरतों को मानव तस्कर अपने थोड़े से आर्थिक लाभ के लिए अमानवीय यतनाओं की काल कोठरी में ढकेल देते हैं ।
इस तरह के अपराधों से लड़ने की जिनकी ज़िम्मेदारी है,वे स्थितियों को और अधिक द्यनीय ही बनाते हुवे से दिखायी पड़ते हैं । कारण है प्रतिबद्धता , ज़िम्मेदारी और संवेदनाओं की कमी । हालत इतने खराब हैं कि मानव तस्करी की पीड़ित  लड़की अनाथालयों , सुधारगृहों, जेलों और अस्पतालों मे बार-बार शारीरिक शोषण का शिकार बनतीं हैं । इसतरह की न जाने कितनी ही खबरें हम समाचार पत्रों और चैनलों पर रोज पढ़ते और देखते हैं ।
सही तरह के कानून,कानून का कड़ाई से पालन और विकसित सामाजिक-आर्थिक ढाँचा इस मानव तस्करी के व्यवसाय पर लगाम लगा सकता है । एक अनुमान के मुताबिक अवैध हथियारों और अवैध नशीली दवाओं की तस्करी से जितनी आय होती है, लगभग उतनी ही या अधिक आय मानव तस्करी के व्यवसाय में भी है । The International Organisation For Migration (IOM) के अनुसार वैश्विक स्तर पे मानव तस्करी के माध्यम से लगभग 08 बिलियन अमेरिकी डालर का व्यापार होता है । किशोर लड़कियों और औरतों की तस्करी का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है , यह पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है ।
   सामान्य तौर पे मानव तस्करी को वेश्यावृत्ति या देहव्यापार तक सीमित समझा जाता है, लेकिन मानव तस्करी का बहुआयामी स्वरूप कंही अधिक विकराल है । देह व्यापार या वेश्यावृत्ति को इसका एक हिस्सा मात्र समझना चाहिए । जीवनयापन के सीमित साधन , सीमित संसाधन, बढ़ती बेरोजगारी, कमजोर आर्थिक परिस्थितियाँ, असमान क्षेत्रिय विकास, स्थानांतरण की मजबूरी  तथा जीवन मूल्यों में आ रही गिरावट मानव तस्करी की त्रासदी के लिए सीधे तौर पे जिम्मेदार है ।
      इस बात को अस्वीकार करना असंभव है कि इतिहास के लगभग हर काल खंड में वेश्यावृत्ति को एक गंभीर सामाजिक समस्या के रूप में रेखांकित किया गया है । इस बात को भी स्वीकार करना होगा कि वेश्यावृत्ति का सामाजिक मूल्यों और नैतिक व्यवहार पर गंभीर प्रभाव पड़ा है । अधिकांश इतिहासकारों ने इस विषय को लेकर चुप्पी साधे रक्खी, सामान्य तौर पे इस विषय पे कम पढ़ने को मिलता है। इसका एक कारण हमारी वो मनोवृत्ति भी है जिसमें हम वेश्यावृत्ति या शारीरिक सम्बन्धों को लेकर आपस में हंसी मज़ाक तो कर लेते हैं पर ऐसे विषयों पर गंभीर चिंतन की जरूरत नहीं समझते । समाज और वेश्यावृत्ति की जिस तरह की गंभीर विवेचना इतिहास में होनी चाहिए थी , वो दिखाई नहीं पड़ती । वेश्यावृत्ति को दुनियाँ की अधिकांश सरकारें अपराध की श्रेणी में रखती हैं । लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि हमारा सामाजिक ढाँचा, रीति-रिवाज, आर्थिक विकास , धार्मिक पद्धतियाँ और मान्यताएं तथा समाज का पूरा ताना-बाना इस व्यवस्था के लिए जिम्मेदार होता है ।
मानवीय सामाजिक व्यवस्था में वेश्यावृत्ति की शुरुआत कब से हुई ? इस प्रश्न का उत्तर तलाशने से कही अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम यह समझने की कोशिश करें कि आख़िर वेश्यावृत्ति है क्या ? और यह समाज पे पनपती कैसे है ? वेश्यावृत्ति को लेकर कुछ परिभाषाओं पे ध्यान देना जरूरी है । जैसे कि -
·         ‘‘ The offering of the body to indiscriminate lewdness for hire.                                     Oxford English Dictionary
·         ‘‘ Prostitution means the offering for reward by a female of her body commonly for purpose of general lewdness.’’ ( stone’s justices manual , note- rexv.de munck1918, IKB 635,82  j.p.i 60 )Prostitution and society/ volume one/prof. Fernando Henriques .

·         ‘‘ A women or girl who for purpose of financial gain, without emotional sanction or selection , supplies the male them and for physiological sex gratification .’’ ( Biological aspects of prostitution in c.p. blacker, ed. A social problem group ? oxford 1937, p. 96)/by- Prostitution and society/ volume one/prof. Fernando Henriques, p. 16 ।
एक बात जो इन परिभाषाओं से स्पष्ट हो रही है वह यह कि आर्थिक लाभ/ फ़ायदे के लिए स्थापित यौनसंबंध वेश्यावृत्ति कहलाता है। इसमें भावनात्मक तत्व का अभाव होता है । इस तरह कई परिभाषाएँ वेश्यावृत्ति को लेकर दी जा सकती है लेकिन मोटे तौर पे शारीरिक सम्बन्धों के लिए पैसों का आदान- प्रदान वेश्यावृत्ति की मुख्य पहचान मानी जा सकती है । अपने शरीर का संभोग के लिए सौदा वेश्यावृत्ति है ।
          वेश्यावृत्ति को सामान्य रूप से शहरी जीवन का हिस्सा माना जाता रहा है लेकिन इसे पूरे सच के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता । हम इस बात को भारत के संदर्भ में देखें तो सदियों से जो सामाजिक और धार्मिक मान्यताएं हमारे यहाँ रही हैं, वे किसी न किसी रूप में इस व्यवसाय को प्रोत्साहित करती रही हैं । पूरी दुनियाँ में धर्म के समानांतर इस व्यवसाय को किसी न किसी रूप में प्रोत्साहित किया गया है । हमारे यहाँ की देवदासी प्रथा इसका एक मुख्य प्रमाण है । 
वेश्यावृत्ति के संबंध मे कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझी जा सकती हैं । जैसे कि -
·         1. यह दुनियाँ के प्राचीनतम व्यवसायों में माना जाता है ।
·         2. विश्व के हर कोने में यह व्यवसाय फल-फूल रहा है । 
·         3. हर धर्म, भाषा, संप्रदाय,जाति और राष्ट्र में इसका अस्तित्व है । 
·         4. इस व्यवसाय में स्त्री  और पुरुष दोनों सहभागी हैं । 
·         5. समलैंगिक वेश्यावृत्ति भी तेजी से बढ़ रही है ।
·         6. अधिकांश बार आर्थिक कारणों से यह व्यवसाय चुना जाता है ।
·         7. इस व्यवसाय में लड़कियों को धोखे और तस्करी के माध्यम से बड़े पैमाने पे ढकेला जा रहा है ।
·         8. समाज के धनी और सम्पन्न लोगों द्वारा छुपे तौर पे इस व्यवसाय को संरक्षण प्रदान किया जाता रहा है .
·         9. बाल वेश्यावृत्ति पूरी दुनियाँ के लिए एक गंभीर चूनौती है । 
·         10. किशोर लड़कियों की तस्करी इस व्यवसाय में बड़े पैमाने में की जा रही है ।
                 आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने आर्थिक और सामाजिक ढांचे को इस तरह खड़ा करें कि क़ीमत कभी भी हमारे मूल्यों पर हावी न होने पाये । नैतिकता को जीवन का आधार होना चाहिए ।  हमारा भारतीय संविधान जिन मूलभूत अधिकारों को लेकर कटिबद्ध दिखता है उनमें से कई अधिकारों का मानव तस्करी के माध्यम से सीधे-सीधे उल्लंघन दिखायी पड़ता है । जैसे कि
·         व्यक्ति की सुरक्षा का अधिकार ।
·         व्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार ।
·         घर और परिवार का अधिकार ।
·         स्वास्थ्य का अधिकार ।
·         शिक्षा का अधिकार ।
·         रोज़गार चुनने का अधिकार ।
मानव तस्करी को एक ऐसा अवैध व्यापार माना जा सकता है जो कतिपय सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक कारणों से वैध व्यापार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता । मानव तस्करी को अपराध की श्रेणी में रखा जाता है क्योंकि यह मनवाधिकारों का साफ तौर पे उल्लंघन करता है । अधिकांश अध्ययनों, सर्वेक्षणों और अनुसन्धानों के माध्यम से यह बात सामने आयी है कि जितनी भी लड़कियों और औरतों की तस्करी की जाती है , उनमें से 30% से 90% लड़कियां 18 वर्ष से कम आयु की होती हैं । भारत में हर साल अनुमानतः 2 करोड बच्चे मानव तस्करी का शिकार हो रहे हैं ।