Showing posts with label लड्डू पे लट्टू. Show all posts
Showing posts with label लड्डू पे लट्टू. Show all posts

Saturday, 3 May 2014

लड्डू पे लट्टू

याद है वो बचपन की शरारत 
माँ चाहे जहां छुपा के रख दे 
खोज ही लेता था 
लड्डू का डब्बा । 
लड्डू पे हमेशा लट्टू रहा 
न जाने कितनी डांट फटकार के बाद भी 
बेशर्मों की तरह
लड्डू पे लट्टू । 
माँ डांटती तो कहती 
इतना लड्डू खाएगा तो लड्डू हो जाएगा 
काया की माया तो वैसी ही है पर
मैं लड्डू नहीं हूँ
लड्डू तो माँ है
बचपन है
मासूम दिनों की याद है
रिश्तों की मिठास है ।
इधर सालों से
बड़े होते हुए
बड़ी बड़ी बातों के बीच
जीवन की अनिश्चितताओं के बीच
भूल गया था
लड्डू का स्वाद ही ।
फिर एक दिन तुम्हें देखा तो
याद आ गया
वही लड्डू
अजीब है थोड़ा पर सच है
तुम लड्डू ही लगी ।
मीठी आँखों वाली
तीखी बातों वाली
बचपन सी चंचल
जिद पे हरदम अटल
हर बात के साथ नई पहल ।
अब तुम ही कहो
तुम्हें और क्या कहता
कहो लड्डू ?

What should be included in traning programs of Abroad Hindi Teachers

  Cultural sensitivity and intercultural communication Syllabus design (Beginner, Intermediate, Advanced) Integrating grammar, vocabulary, a...