सजे हो महफ़िल में आखों में चमक नहीं ,
हँसता चेहरा खिलती बातें पर वो मुस्कान नहीं ;
घूम रही है तू इठला के पर गुमान नहीं ,
क्या उलझन है तेरे दिल की ,
क्यूँ तेरा मन शांत नहीं /
तेरी खनकती आवाजों को सब तेरी खुशियाँ मान रहे ,
बदन थिरकता तेरा धुनों पे सब सुखी तुझे जान रहे ;
तेरी आभा जो खोयी है वो नहीं जान रहे ,
जो कहना चाहो कह दो मुझसे क्या बिखरा क्या खोया है ,
क्यूँ खुशियाँ दिल में नहीं तेरे जो तुने चेहरे पे बिखरा है ;
क्या यादों का साथ अभी है ,
क्या ह्रदय में घाव अभी है ,
क्या सब हो के भी कुछ खलता है ,
क्या प्यार तेरा अब भी जलता है ;
क्यूँ त्योहारों पे उमंगें उमंगें छाती है ,
क्यूँ फिर भी आखें नहीं हंस पाती हैं /
अब राहों पे रुकना कैसा ,
अब चाहों से हटना कैसा ,
ह्रदय है हावी तो दिल की सुनो ,
अब क्यूँ घुटना क्यूँ मुड़ के देखना ;
अब है रिश्तों को अपने ढंग से जीना /
कुछ तकलीफे कुछ खुशियाँ होंगी ,
पर वो तेरी अपनी होंगी /
-- - -- - - पर वो तेरी अपनी होंगी /
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लिप्त हैं वो अभिसार में ,
खोये हैं वो इक दूजे के प्यार में ;
ओठ पी रहे ओठों की मदिरा ,
चंचल मान और काम का कोहरा ;
मचल रहा बदन बदन के प्यास से ,
चहक रहा तन तन के साथ से,
चन्दन सा घर्षण मेंहंदी सी खुसबू ,
उत्तेजित काया मन बेकाबू ,
कम्पित उच्च उरोजों का वो मर्दन ,
चूमता बदन और हर्ष का क्रन्दन ,
उफनती सांसों का महकता गुंजन ,
दुनिया से अनजान पलों में ,
स्वर्गिक वो तनों का मंथन ,
कितना भींच सको अपने में ,
कितना दैविक वो छनों का बंधन ,
भावों की वो चरमानुभुती है ,
प्रेमोत्सव की परिणिति है ;
प्यार सिर्फ अभिसार की राह नहीं है यारों ,
पर प्यार की ही ये भी इक प्रीती है ,
प्यार का बंधन तन मन का आलिंगन ,
कितनी दिव्य ये भी इक रीती है /
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क्या वक़्त था वो भी ,क्या समय था वो भी ,
वो मुझपे मरती थी मै कितना डरता था ;
नजरें जब भी उनसे मिलती थी ,
पलकें पहले मेरी झुकतीं थी ,
पास जो आके वो इतराती ,
मेरी हालत पतली हो जाती ,
बात वो करती जब अदा से ,
कम्पित तन मन थर -थर करता ,
बदन कभी जब बदन से लगता ,
दिल मेरा धक् -धक् सा करता ,
मुस्काती थी तब वो खुल के ,
मै पत्थर का बुत बन जाता ,
हफ्ते बीते ,बीते मौसम ,
बदला साल महीने बीते ,
पता नहीं कब मैंने हाथ वो पकड़ा ,
कब उसने बंधन में जकड़ा ,
कब डूबा उसकी बातों में ,
कब खोया उसकी आखों में ,
वक़्त उड़ा फिर ,नहीं पता चला फिर ,
कब उसकी मगनी कब शादी बीती ,
असहाय हुआ मूक बना कब ,
क्यूँ उसने नहीं मुझको बोला ,
आखों में खालीपन लिए मै डोला ,
अब सिने को सिने की बारी थी ,
अब नए जीवन से लड़ने की तैयारी थी ,
नयी राह पे फिर मैं निकला ,
फिर जीवन को जीने की ठानी थी /