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Sunday 17 January 2010

मै वही मोहब्बत वही शख्स हूँ /

अनजान नहीं हूँ ,पहचान नहीं हूँ ,

पर अब तेरा ध्यान नहीं हूँ ,

विरह विराट हूँ ,अव्यक्त अहसास हूँ ,

अब तेरा विभक्त विश्वास हूँ ,

प्यार मेरा न थमा है न थमेगा ,न घटा है न घटेगा ,

तेरे बाँहों में था जो सुख ,

मन उसे न भुला है न भूलेगा ,न उससे जी भरा है न भरेगा ,

आशक्त था आशक्त हूँ ,

तेरी बातों का अर्थ हूँ ,न बदला वो असमर्थ हूँ ,

तेरी बड़ती अभिलषा ने पीछे छोड़ा ,

नयी विधाओं से ना खुद को जोड़ा ,

जिसे देख चुपके से तू आंसूं पोंछे ,

मै वही मोहब्बत वही शख्स हूँ /

Friday 15 January 2010

जब सांसों का उदभाव वही हो /

कभी तू मुझपे मरती थी तू कहती है ,
कभी तू मुझसे प्यार करती थी तू कहती है ,
कभी विश्वास किया था मुझपे ,
कभी सांसों का भाग किया था मुझको ,
तुने तो मुझे इतिहास बना डाला ,
बारिश के मौसम को अकाल बना डाला ,
बड़े शौक से फूकें शायद मेरी अर्थी को ,
तुने जजबातों को सूखा व्यवहार बना डाला ,
तुने रिश्ते को अवसाद बना डाला ,
मुझको इतिहास बना डाला /

कहते हो वो कोई और वक़्त था ,
वो तो भावों में बहने का दौर था ,
तरुणाई के जज्बों से अब क्या लेना देना ,
वो तो बाँहों में खिलने का ठौर था /

पर वो मेरे सत का प्यार था ,
मेरे सपनों का इज़हार था ,
मेरी धड़कनों की गूंज थी ,
मेरे दिल की हूक थी ,
मेरी सांसों की साँस थी ,
मेरे अरमानो की प्रीती थी /

मै इतिहास नहीं हूँ ,
इंतजार है , तकरार है ,
पर मै भूतकाल नहीं हूँ ,
प्यार चुकता नहीं ।
अंग संग जलाता है ,
समय कोई हो ,
दिल में बसता है /

वक़्त कोई हो ,
प्यार वही हो ,
भावों का सरगम क्यूँ बदलें ,
जब सांसों का उदभाव वही हो /



Thursday 31 December 2009

नूतन क्या है जो मै लायुं /

नूतन क्या है जो मै लायुं ,

क्या नूतन मै भाव सजायुं ;

नित्य सुबह को नयी है किरणे ,

उनमे क्या मै और मिलायुं ,

नूतन क्या है जो मै लायुं ,

मेरी निजता तुममे है खोयी ,

तेरे सपनों से प्रभुता है जोई ;

नित नए पलों का उदगम हरदम ,

कितने उसमे सपने मै बोयुं ,

नूतन क्या है जो मै लायुं ,

तुझको तकते आखें है सोयी ;

नया है हर पल ,हर छन नया है ,

नयी है शामें सुबह नयी है ,

नया महिना साल नया है ,

क्या नया नया मै जोडूँ यार पुराने ,

क्या मै बदलूं प्यार पुराने ;

नूतन क्या है जो मै लायुं ,

क्या नूतन मै भाव सजायुं ;

Wednesday 23 December 2009

सजे हो महफ़िल में आखों में चमक नहीं /

सजे हो महफ़िल में आखों में चमक नहीं ,
हँसता चेहरा खिलती बातें पर वो मुस्कान नहीं ;
घूम रही है तू इठला के पर गुमान नहीं ,
क्या उलझन है तेरे दिल की ,
क्यूँ तेरा मन शांत नहीं /
तेरी खनकती आवाजों को सब तेरी खुशियाँ मान रहे ,
बदन थिरकता तेरा धुनों पे सब सुखी तुझे जान रहे ;
तेरी आभा जो खोयी है वो नहीं जान रहे ,
जो कहना चाहो कह दो मुझसे क्या बिखरा क्या खोया है ,
क्यूँ खुशियाँ दिल में नहीं तेरे जो तुने चेहरे पे बिखरा है ;
क्या यादों का साथ अभी है ,
क्या ह्रदय में घाव अभी है ,
क्या सब हो के भी कुछ खलता है ,
क्या प्यार तेरा अब भी जलता है ;
क्यूँ त्योहारों पे उमंगें उमंगें छाती है ,
क्यूँ फिर भी आखें नहीं हंस पाती हैं /
अब राहों पे रुकना कैसा ,
अब चाहों से हटना कैसा ,
ह्रदय है हावी तो दिल की सुनो ,
अब क्यूँ घुटना क्यूँ मुड़ के देखना ;
अब है रिश्तों को अपने ढंग से जीना /
कुछ तकलीफे कुछ खुशियाँ होंगी ,
पर वो तेरी अपनी होंगी /
-- - -- - - पर वो तेरी अपनी होंगी /

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लिप्त हैं वो अभिसार में ,

खोये हैं वो इक दूजे के प्यार में ;

ओठ पी रहे ओठों की मदिरा ,

चंचल मान और काम का कोहरा ;

मचल रहा बदन बदन के प्यास से ,

चहक रहा तन तन के साथ से,

चन्दन सा घर्षण मेंहंदी सी खुसबू ,

उत्तेजित काया मन बेकाबू ,

कम्पित उच्च उरोजों का वो मर्दन ,

चूमता बदन और हर्ष का क्रन्दन ,

उफनती सांसों का महकता गुंजन ,

दुनिया से अनजान पलों में ,

स्वर्गिक वो तनों का मंथन ,

कितना भींच सको अपने में ,

कितना दैविक वो छनों का बंधन ,

भावों की वो चरमानुभुती है ,

प्रेमोत्सव की परिणिति है ;

प्यार सिर्फ अभिसार की राह नहीं है यारों ,

पर प्यार की ही ये भी इक प्रीती है ,

प्यार का बंधन तन मन का आलिंगन ,

कितनी दिव्य ये भी इक रीती है /

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क्या वक़्त था वो भी ,क्या समय था वो भी ,

वो मुझपे मरती थी मै कितना डरता था ;

नजरें जब भी उनसे मिलती थी ,

पलकें पहले मेरी झुकतीं थी ,

पास जो आके वो इतराती ,

मेरी हालत पतली हो जाती ,

बात वो करती जब अदा से ,

कम्पित तन मन थर -थर करता ,

बदन कभी जब बदन से लगता ,

दिल मेरा धक् -धक् सा करता ,

मुस्काती थी तब वो खुल के ,

मै पत्थर का बुत बन जाता ,

हफ्ते बीते ,बीते मौसम ,

बदला साल महीने बीते ,

पता नहीं कब मैंने हाथ वो पकड़ा ,

कब उसने बंधन में जकड़ा ,

कब डूबा उसकी बातों में ,

कब खोया उसकी आखों में ,

वक़्त उड़ा फिर ,नहीं पता चला फिर ,

कब उसकी मगनी कब शादी बीती ,

असहाय हुआ मूक बना कब ,

क्यूँ उसने नहीं मुझको बोला ,

आखों में खालीपन लिए मै डोला ,

अब सिने को सिने की बारी थी ,

अब नए जीवन से लड़ने की तैयारी थी ,

नयी राह पे फिर मैं निकला ,

फिर जीवन को जीने की ठानी थी /

Sunday 20 December 2009

आ इक दूजे के सपने जिए हम /

आहत हूँ क्यूँ व्यवहार पे उनके ,
चाहा था इसी चाल पे उनके ,
मचल उठती थी धड़कने उनकी अदाओं पे ,
क्यूँ चाहता हूँ वो बदले मेरी बातों पे ;

आवारापन मेरी सोचों का जो तुझे भाया था ,
मेरी जिस बेफक्री ने तुझे रिझाया था ,
मेरी ख़ामोशी जो तुझे लुभाती थी ,
क्यूँ मेरी वो आदतें तुझे खिजाती है ;

आ खोजे इक दूजे को हम नयी पनाहों में ,
समझे हालातों संग ढलना नयी फिजाओं में ,
बदले तौर तरीके पर खुद को ना खोये हम ,
आ इक दूजे के सपने जिए हम /

उज़्बेकी कोक समसा / समोसा

 यह है कोक समसा/ समोसा। इसमें हरी सब्जी भरी होती है और इसे तंदूर में सेकते हैं। मसाला और मिर्च बिलकुल नहीं होता, इसलिए मैंने शेंगदाने और मिर...