सुखजीवी :-
228 पृष्ठों का यह उपन्यास 'संभावना प्रकाशन` हापुड़ से 1982 में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास भी रोमान्टिक ऐटीट्याूड को ही व्यक्त करता है। यह उपन्यास दीपक नामक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसके संदर्भ में उपन्यास का ही यह वाक्यांश सही लगता है कि, ''दुनिया में ऐसे किस्म के भी व्यक्ति हैं, जिनमें बुद्धि और मौलिकता नहीं होती, जो हर संभावनाओं से हीन होते हैं, जो मन से सर्वथा कमजोर होते हैं, परन्तु उनके मन के भीतर एक ऐसी स्वार्थ परकता, दुष्टता और हीनता होती है, जिसको वे अपनी बातों अस्वीकार करने की चेष्टा करते हुए मालूम होते हैं।``19
उपन्यास के नायक दीपक का यही हाल है। वह अपनी सीधी-सादी पत्नी से बात-बात में झूठ बोलता। उसके घर देर पहुँचने पर जब पत्नी अहल्या कारण पूछती तो वह यह बताता कि उसका एक्सीडेन्ट हो गया था। इसी तरह के झूठ वह हर बात में कहता। ''अहल्या को चिन्तित, दुखित और रोते देखकर उसे सदा यह सन्तोष होता था कि वह एक ऐसी स्त्री का पति है जो उसको अपनी समस्त शक्ति से प्यार करती है और उसके लिए कोई भी कुरबानी कर सकती हैं। वह यह अपना अधिकार समझता था कि अहल्या जैसी पतिव्रता स्त्री उसके कष्ट और मजबूरी की बात सुनकर अपना समस्त अभिमान, शिकवा-शिकायत और तकलीफ भूल जाय। और चूंकि अहल्या ऐसी ही करती थी इसलिये वह अपने दु:ख, पीड़ा और लाचारी की बात करके पत्नी को निरस्त्र करने में सदा सफल होता था।``20
पत्नी के इसी स्वभाव का फायदा उठाकर दीपक पड़ोस में रहनेवाली लड़की रेखा से झूठा प्रेम करने लगता है। वास्तव में उसकी दिलचस्पी सिर्फ रेखा की जवान देह में ही थी। रेखा भी उसके प्रेम जाल में आसानी से फँस जाती है। वह रेखा को यह बताकर सहानुभूति हाँसिल करता है कि वह अपनी पत्नी अहल्या से दुखी है। अहल्या के अंदर कोई गुण नहीं है। वह अपने जीवन में प्रेम के लिए तरस गया है। रेखा दीपक की इन बातों में फँस गयी। उसने अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर दिया। दीपक ने उसके शरीर से पूरा सूख उठाया। जैसे चाहा वैसे प्रेम किया। पर जब रेखा ने दीपक को पूरी तरह अधिकार के साथ पाना चाहा तो वह डर गया।
इधर जब धीरे-धीरे अहल्या को दीपक और रेखा के संबंधों के बारे में पता चल जाबा है तो दीपक डर के अहल्या के पैरों पर गिर पड़ता है। उसे समझाते हुए दीपक कहता है कि, ''मैं अपनी गलती मान लेता हूँ। मैंने तुम्हारे साथ धोखा किया। आज मेरी आँखे खुल गई हैं। मैं उस आवारा लड़की से बहुत दिनों से पिंड छुडाना चाहता था, लेकिन वह मेरे पीछे पड गई है। जानती हो, बुरी औरतें किस तरह मर्दो को फंसा लेती हैं? मुझमें बहुत-सी कमजोरियाँ हैं, लेकिन कम-से-कम यह कमजोरी मुझमें नहीं थी। मैं पराई औरतों से कोसों दूर रहता था। फिर यह लड़की आई। यह जान-बूझकर मेरे पास आती, मुझसे छेड़ा-खानी करती, आंखों से कटाक्ष करती। ..... यह लडकी तो यूनिवर्सिटी की बहुत चालू लड़की है। इसका काम ही है। एक मर्द को फांसना, फिर उसको छोड़कर दूसरे मर्द को पकड़ना। तुमने आज बचा लिया, अहल्या, तुमसे और बच्चों से बढ़कर मेरे लिए कोई नहीं। भगवान का शुक्र है कि तुम्हारी-जैसी स्त्री मुझको मिली.... मैं तुम्हारी और बच्चों की कसम खाता हूँ कि मैं आगे से उस आवारा लड़की से कोई मतलब नहीं रखूंगा।``21
इस तरह वह अहल्या को मनाता है। कुछ दिनों तक उसका खयाल भी रखता है। पर वह यह नहीं चाहता था कि रेखा के जवान शरीर का सुख उससे छूट जाये। अत: वह एक दिन रेखा से मिलता है। पर रेखा उसकी वह बातें चुपके से सुन चुकी रहती है जो वह अहल्या से रेखा के संबंध में कहता है। रेखा उसे झिड़क देती है। दीपक को रेखा का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगता। वह मन ही मन उसे कोसता है। दीपक फिर यह निर्णय लेता है कि वह अपनी पत्नी और बच्चों का खयाल रखेगा और कानून की पड़ाई करेगा व वकील बन कर देश की सेवा करेगा।
दीपक के इस संकल्प के साथ उपन्यास खत्म हो जाता है। लेकिन दीपक जैसे लोगों के संकल्प कभी भी बदल सकते हैं। अपने सुख और आराम के लिए दीपक हर स्तर पर गिरने के लिए तैयार रहता था। हर बात में वह अपने सुख और लाभ का हिसाब लगाता था। उसका सारा आदर्श, सारी नैतिकता उसके अपने शरीर सुख तक केन्द्रित रहती है। वह सही मायनों में 'सुखजीवी` था। इस तरह उपन्यास के कथानक के आधार पर इस शीर्षक एकदम उचित प्रतीत होता है।
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Tuesday, 27 April 2010
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