Sunday, 26 April 2009

कभी वो न मेरी थी ,कभी मैं न दूजा था

कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;
बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
दिन निकालता है रात ढलती है , उसके बदन की खुसबू मन में बसी रहती है ;
कभी आँखें दिखाती थी ,कभी निगाहें मिलाती थी ;
कभी वो मुस्कराती थी ,कभी खिलखिलाती थी ;
कभी वो शरमा के आती थी ,कभी वो तन के जाती थी ;
नजदीक आती कुछ इस अदा से, दिल चाक हो ,
उसके सिने की मासूम सी हलचल , या खुदा इंसाफ हो जाये ;
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
दिन रात मेरी यादों में बसा रहता है ;उसकी यादों से मेरा कोई रिश्ता न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
सांसें महकती थी ,तूफान उठता था ;बाँहों के दरम्यान सारा जहान होता था ;
कभी सिने से लग जाती ,कभी बर्फ की मानिंद पिघल जाती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /ViNAY

3 comments:

  1. आपका कविता को प्रस्तुत करने क ढ़ंग बहुत ही अछा है। कविता बहुत ही भावपुर्ण है। मुझे बहुत अछि लगी।

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  2. waah..........bahut khoobsoorat ahsaas.

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