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Wednesday, 10 August 2011

तुम्हारा हाथ हांथों से छूट जाने के बाद

जिन्दगी की दौड़ में 
तुम्हारा हाथ हांथों से  छूट जाने के बाद 
मैं हांफता रहा
अपनी आँखों से
 तुम्हे दूर जाता हुआ देखता रहा.

तुम्हारे बाद भी 
 तुम्हारे लिए ही 
 पूरी ताकत से दौड़ता रहा
 पर तुम कंही ना मिली .

वीरान रास्तों पर
अब भी चलता जा रहा हूँ 
तुझे सोचते हुवे 
 तुझे चाहते हुवे
 तुम्हारी उम्मीद में
तुम्हारी ही तलाश में

एक ऐसी तलाश जिसमे 
 जुस्तजू के अलावां
 और कुछ भी नहीं 
खुद को छलने के सिवा 
 और कुछ भी नहीं.
त्रिषिता की तृष्णा के सिवा
 कुछ भी नहीं

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  लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र ( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान ) एवं ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़ ( ताशकं...