अमरकांत का उपन्यास - ग्राम सेविका
'ग्राम सेविका` उपन्यास का प्रथम संस्करण अप्रैल 1962, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास के संदर्भ में अमरकांत ने लिखा है कि, ''कुछ ग्राम सेविकाओं से इन्टरव्यू के आधार पर लिखे गये इस उपन्यास का आकार शुरू में काफी छोटा था। इसी रूप में यह 'नयी हवा नयी रोशनी` के नाम से उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना विभाग के साप्ताहिक पत्र 'ग्राम्या` में धारावाहिक रूप में छपा था।``13
कमला प्रसाद पाण्डेय जी ने अमरकांत के इस उपन्यास के संदर्भ में लिखा है, '' 'ग्राम सेविका` में कथा स्त्री की ओर से आरंभ होती है। दमयन्ती को अपनी किशोरावस्था में अतुल से मोह हुआ जिसे दोनों ने प्यार कहा। रूढ़िवादी मजबूरियों के कारण मोह भंग हुआ, विवाह न हो सका, दमयन्ती ग्रामसेविका बनी। बद के जीवन में उसे एक बार मोह से निवृत्त हो चुकने का लाभ मिला; अतुल से छूटने कि शिक्षा ने उसके जीवन को साहस, समझ और प्रेम की व्याख्या दी। अंतत: वह गांव के जीवन में सामाजिक रूपान्तरण का कार्य करती बीच से अपनी भाँति मोह के कीचड़ से हरचरण को निकाल लाई। दोनों का विवाह हो गया।``14
'ग्राम सेविका` उपन्यास की यही वस्तु कथा है। जिसे अमरकांत ने लगभग 186 पृष्ठों में लिखा है। इस उपन्यास में ''अमरकांत का समाजवादी आधार गाँधीवादी आधार से पराजित दिखाई देता है।``15 अमरकांत के इस उपन्यास को पढ़ते हुए प्रेमचंद के 'सेवासदन` की याद आ जाती है। हालांकि सेवासदन के रचनात्मक स्तर पर 'ग्रामसेविका` की बराबरी नहीं हो सकती पर 'सुधारवाद` का स्वर दोनों ही उपन्यासों में एक सा प्रतीत होता है।
'सेवासदन` प्रेमचंद का पहला उपन्यास है तो 'ग्राम सेविका` अमरकांत के शुरूआती उपन्यासों में से एक है। 'सेवासदन` की मुख्य समस्या 'वेश्या-जीवन में सुधार` का हल प्रेमचंद सेवासदन की स्थापना में ढूँढते हैं। वास्तविक धरातल पर यह उपाय किसी काम का नहीं है। जबकि 'ग्रामसेविका` उपन्यास में समाधान प्रस्तुत करने की अपनी तरफ से कोई आदर्शवादी चेष्टा अमरकांत नहीं करतें। उनकी पात्र 'दमयन्ती` अपने संघर्ष को उतना ही सहज-सरल तरीके से लड़ती है जितना कि उन परिस्थितियों में घिरी कोई भी स्त्री लड़ सकती है। निश्चित तौर पर उनकी नायिका ग्रामसेविका बनकर आदर्श की नई स्थितियों को छूती है। पर उसमें असंभव जैसी कोई बात नहीं दिखती।
अत: अमरकांत के इस उपन्यास के संदर्भ में कहा जा सकता है कि यह उपन्यास यथार्थ के धरातल पर प्रस्तुत एक सुंदर कृति है। इस उपन्यास के माध्यम से अपने समय, परिवेश, समाज और सामाजिक परिवर्तनों को अमरकांत ने बखूबी प्रस्तुत किया है। 'दमयन्ती` का जवीन संघर्ष उसके जैसी हजारों स्त्रियों के जीवन संघर्ष का आईना है।
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Tuesday, 27 April 2010
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