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Wednesday, 16 December 2009

सरल सहज साधारण सपनों का साथ लिए /

सरल सहज साधारण सपनों का साथ लिए ,
सुन्दर सीधी साथी के सांसों का भान लिए ;
सम्यक ,संकुचित सतही सा ज्ञान लिए ,
मै निकला था जीवन की राहों में ,
अपने और घरवालों का अरमान लिए /

राहों में उलझा ,बातों में खीझा ,
भटका सालों फिर भी जीवन ना सुलझा ;
हार ना मानी जीत ना जानी ,
तकलीफें आयीं , मुश्किल झायी ,
हिम्मत ना हारी मै ना पलटा ,
चंचलता आयी ,माया ने माया फैलाई ;
मन भरमाया ,तन छितराया ,
भावों ने टोका ,राहों पे लौटा ;

सरल सहज साधारण सपनों का साथ लिए ,
सुन्दर सीधी साथी के सांसों का भान लिए ;
सम्यक ,संकुचित सतही सा ज्ञान लिए ,
मै निकला था जीवन की राहों में ,
अपने और घरवालों का अरमान लिए
/


अपनो के प्यार ने वर्षों को आसान किये ,
आशीर्वाद और आशीष ने मंजिल तक की रह दिए ;
माँ के भावों ने हरदम मुझे संजोये रक्खा ,
भाई बहनों कितने ही अपनो की दुआओं ने भटकाव को रोका ;
साथी तेरे प्यार ने कितने ही पल आसान किये ;
रुका नहीं हूँ अब भी मै तो पर चलता हूँ संज्ञान लिए, ,
बाँहों में सीखा ,राहों में सीखा और सीखा अभावों में
गिर के सीखा लड़ के सीखा और सीखा स्वभावों में ,
ममता से सीखा ,स्नेह से सीखा और सीखा बंधुत्व से ,
दुश्मन से सीखा ,चिलमन से सीखा और सीखा सदभाव से ;
यारी से सीखा तीमारदारी से सीखा और सीखा सरदारी से ;
भाग्य से सीखा अभाग्य से सीखा और सीखा खुद्दारी से ;
पास नहीं है मंजिल फिर भी, पर अब वो दूर नहीं है ;
साथ अभी भी है सब अपनो का ,जहाँ में इससे बढकर ख़ुशी नहीं है ;
राहों में चलने की हैं खुशियाँ मंजिल तो पल भर की है ;
नयी तलाश नयी मंजिले फिर बनती हैं खुशियाँ तो जीने में है /

सरल सहज साधारण सपनों का साथ लिए ,
सुन्दर सीधी साथी के सांसों का भान लिए ;
सम्यक ,संकुचित सतही सा ज्ञान लिए ,
मै निकला था जीवन की राहों में ,
अपने और घरवालों का अरमान लिए /

डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित

 डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित  दिनांक 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज ...