Showing posts with label अब जब की नहीं हो तुम. Show all posts
Showing posts with label अब जब की नहीं हो तुम. Show all posts

Wednesday, 5 March 2014

अब जब की नहीं हो तुम

अब जब कि नहीं हो तुम 
"तुम्हारा होना'' बहुत याद आता है । 
इस अकेलेपन के साथ 
"तुम्हारा साथ" बहुत याद आता है । 
खुद बिखरते  हुए 
तुम्हारी स्मृतियों को समेटना 
अजीब है । 
जितना बिखरता हूँ 
उतना ही समेटता हूँ । 
जितना समेटता हूँ 
उतना ही बाकी है 
ओह !!
जाने कितना बाकी है ?