
मत देना तुलसी-गंगाजल ।
अपने ओठों का एक चुम्बन ,
ओठों पे देना मेरे प्रिये ।
इससे पावन जग मे पूरे ,
वस्तु ना दूजी कोई होगी ।
इसमे तेरा प्यार भरा ,
और स्वप्न मेरा साकार प्रिये ।
मै ये सोच के उसके डर से उठा था ;
वो रोक लेगी , मना लेगी मुझको ;
आगे बड़कर ,दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको ;
आखों ने आस लिए उसको देखा था ;
किसी आभास के लिए , मै हलका सा पलटा था ;
ना उसने रोका , न मनाया ;
न दामन पकड़कर मुझको बिठाया ;
ना आवाज दी ,न मुझको बुलाया ;
न आखों ने उसकी कोई ढाढस बंधाया ;
मै रुकते कदमो से ,झिझकते भावों से ;
शायद अब भी रोक ले, इन धारानावों से ;
धीरे धीरे बाहर निकल आया ;बहुत दूर चला आया /
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