पिताजी की सेवानिवृत्ति
*************************************
आज ३१ मार्च २०१० को रोज की ही तरह पिताजी अपने स्कूल गए,ठीक उसी तरह जैसे की वे पिछले ३० सालों से जा रहे थे.जितनी मेरी उम्र है,लगभग उतने ही साल पिताजी को नौकरी करते हो गए. एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापक के रूप में ३० साल की नौकरी .
रोज वे सुबह ६.०० बजे के आस-पास उठते थे.लेकिन आज वे लगभग ४.३० बजे ही उठ गए थे.शायद रात को नीद भी ठीक से नहीं आयी होगी. उठ कर पानी पिए और बाथरूम चले गए.आज ६ बजे ही वे तैयार थे,अपने स्कूल जाने के लिए.स्कूल का आखरी दिन. पापा बड़े असहज नजर आ रहे थे.लेकिन अपनी परेसानी को दिखाना नहीं चाहते थे. इधर-उधर घूमते हुवे ,टी.वी. पर नजर गई. उसे उन्होंने चला दिया. लगभग सभी चैनलों पर कोई ना कोई बाबा जी धैर्य और शांति का पाठ पढ़ा रहे थे.मैं भी उठ गया था.बिना कुछ बोले मैं भी टी.वी. देखने लगा.
पापा ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दिया.जवाब में मैं भी मुस्कुरा दिया. शायद मैं उनके मन की हालत समझ रहा था.माहौल को हल्का-फुल्का करने के लिए मैंने ही कहा,''तो डैड, आजादी मुबारक हो.आज के बाद आप किसी साले के गुलाम नहीं रह जायेंगे.आज तो पार्टी देंगे ना ?'' मेरी बात सुनकर पापा फिर मुस्कुरा दिए.उनकी चुप्पी के पीछे के दर्द,चिंता और परेसानी को मैं अच्छी तरह समझ रहा था. इतने में माँ चाय लेकर आ गयी. पापा ने माँ की तरफ देख कर कहा,'' आज से तुम्हारी माँ को आराम हो जायेगा .इतनी सुबह-सुबह उठकर इनको अब चाय नहीं बनानी पड़ेगी.'' माँ यह बात सुनकर रोने को हुई पर वः जल्दी से किचन में चली गयी. हम दोनों पिता-पुत्र चाय की चुस्कियां इस तरह ले रहे थे जैसे जग-जीवन का सारा दर्शन चाय पीते हुवे ही समझा जा सकता है.एक अजीब सी ख़ामोशी के बीच निरर्थक सा प्रवचन टी.वी. के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था.
जब ६.४५ बजे तो पापा ने मेरी तरफ देख कर कहा,'' जाऊं विद्यालय ? समय तो हो गया .'' मैंने भी तुरंत पापा से कहा ,'' जाइए पिताजी,३० साल की गुलामी को आज तोड़ कर चले आइये.''पापा मुस्कुराते हुवे चले गए. लगभग ११.३० बजे वे वापस आये. साथ में स्कूल का चपरासी भी आया था. उसके हाँथ में दो बड़ी थैलियाँ थी. दोनों सोफे पे साथ ही बैठे. पापा बोले,''चलो,खुशी-ख़ुशी सब बीत गया.आज से छुट्टी .'' पापा की बात सुन कर साथ आया चपरासी बोला,'' हाँ सर,लेकिन आप कि बहुत याद आएगी.हमसे जो भूल-चूक हुई हो वो ----------'' इतना कहते ही वह फूटकर रोने लगा. पापा कि भी आँखें भर आयीं .
थोड़ी देर में दोनों ही सहज हो गए. माँ ने उन लोगों को चाय-बिस्किट दिया.फिर पापा के पैर छू कर वह चला गया.उसके जाते ही छोटी भतीजी मानसी पापा के पास जा कर बोली,''बाबा,आज इतना सारा सामान क्या लायें हैं ?'' पापा बोले,'' यही सब मिला है बेटा . एक सफारी का कपडा ,एक छाता,एक टार्च ,यह सोनाटा क़ी घडी ,मोमेंटो ,३ शाल और ढेर सारे हार फूल और हाँ एक पंखा भी है .'' मानसी तुरंत बोली ,'' बाबा मिठाई नहीं है ?''पापा बोले ,''मिठाई तो वन्ही खत्म हो गई,चलो तुम्हारे लिए मिठाई लेकर आते हैं.'' इतना कहकर पापा ने मानसी को गोद में उठा लिया और बाहर निकल पड़े.
मैं चुप-चाप यही सोचता रहा क़ि सेवा निवृत्त होने का मतलब क्या है ?.शायद जिम्मेदारियां उतनी ही पर ------------------------------खैर मैं नहीं जानता क़ि अपनी सेवानिवृत्त पे पापा खुश हैं या नहीं,घर के लोग खुश हैं क़ी नहीं पर मैं इतना तो कह सकता हूँ क़ि इतने सालों में किसी बात ने मुझे पहले कभी इतना नहीं उलझाया ,जितनी क़ी इस बात ने.खैर आज मैं अपने पापा को पार्टी दी रहा हूँ .तीस साल क़ी नौकरी के लिए थैंक्स कहने के लिए और इस बात के एहसास दिलाने के लिए क़ि मैं ने तो अभी -अभी अपनी गुलामी शुरू क़ी है,एक कालेज में.और मैं भी ३० साल तो नौकरी करूँगा ही.
Showing posts with label MY FATHERS RETIERMENT. Show all posts
Showing posts with label MY FATHERS RETIERMENT. Show all posts
Wednesday, 31 March 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)
-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...
-
अमरकांत की कहानी -जिन्दगी और जोक : 'जिंदगी और जोक` रजुआ नाम एक भिखमंगे व्यक्ति की कहानी है। जिसे लेखक ने मुहल्ले में आते-ज...