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Sunday, 18 June 2023

जो तुमने कहा था

 उन दिनों

तुमसे कुछ कहने के लिए

अल्फाज़ ही नहीं थे

फिर

कुछ न कहने पर

कितनी पंचायत

रस्मों रिवाजों की दुहाई

मानो

किसी तेज़ शोर के बीच

धूप की तपिश में

मैं कोहरे में नहाया हुआ था।


अतीत की स्मृतियों को

टूटे हुए आईने में

चुपचाप  देखना

अजीब सा रूखापन 

भर देता है

फिर किसी की मेहरबानी के लिए भी

बहुत देर हो चुकी थी।


कोई यह नहीं जान पाया कि

चीज़ों को इकट्ठा करने में

जब इतनी पीड़ा हो रही थी

तो मैं

उसी पीड़ा में

किसी मीठी चमक को

कैसे पा रहा था?

आखिर ये

कौन सी बीमारी थी ?

अगर मैं कुछ बताता भी तो

किसी को

कहां यकीन होता ?


मैं जहां था

वहां वक्त ही वक्त था

सिर्फ़

अपने हिसाब से

जीने की मनाही थी

किसी के लिए एकदम से

गैर जरूरी होने के दुःख से

आँखें अक्सर

नम हो जाती

इनमें बचा हुआ पानी 

कातर भाव में

कतार में रहते ।


मटमैला सा 

यह जीवन 

मौन विलाप की मुद्रा में

अदहन की तरह 

चुर रहा था 

पुख्ता छानबीन के बाद

लगता है कि

तुम्हारी यादों में ही

कहीं खो जाऊंगा

फिर

तुमसे ही आंख चुराते हुए

वही याद भी करूं

जो तुमने कहा था।

Dr Manish Kumar Mishra