फिर ना आयी ,जाने किधर गयी
वो शाम जो ,तेरे पहलू में गुजर गयी .
वीरान हो गए हैं, अब गाँव सारे
नई पौध तो ,कब की शहर गयी .
तेरे पास लौटना तो चाहता हूँ
पर जाने कंहा वह डगर गयी .
अब कौन बदलेगा इस व्यवस्था को,
दिलों से इन्कलाब की वो लहर गयी .
हकीकत में सूख रहे हैं खेत सारे ,
सिर्फ कागजों पे बनती नहर गयी .
Showing posts with label तेरे पहलू में गुजर गयी. Show all posts
Showing posts with label तेरे पहलू में गुजर गयी. Show all posts
Tuesday, 2 November 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)
ताशकंद संवाद: उज़्बेकिस्तान से प्रकाशित पहली ई पत्रिका
https://tashkantsamvad.blogspot.com/?m=1 साथियों , आप के साथ यह खबर साझा करते हुए खुशी हो रही है कि उज़्बेकिस्तान, ताशकंद से हिन्दी की पहली ...

-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...
-
कथाकार अमरकांत : संवेदना और शिल्प कथाकार अमरकांत पर शोध प्रबंध अध्याय - 1 क) अमरकांत : संक्षिप्त जीवन वृत्त ...