बोध कथा-3: तेरा जलना ,मेरा सुलगना
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एक रात जब शमा जल रही थी ,तो अचानक उसका ध्यान पिघलते हुए मोम पे गया.उस मोम को देख एक मासूम सा सवाल शमा के मन में उठा.उसने पिघलते हुए मोम से कहा-''हे सखे, मैं तो जल ही रही हूँ,ताकि अँधेरे को कुछ समय तक दूर रख सकूँ.जब सुबह होगी तो मेरा काम खत्म हो जायेगा.लेकिन तुम इसतरह पिघल क्यों रहे हो ?तुम क्यों पिघलना चाहते हो ?
शमा क़ी बात सुन कर मोम कुछ पल खामोश रहा,फिर धीरे से बोला-''हे शुभे,हमारा साथ विधाता ने सुनिश्चित किया है.लेकिन ये हमारी नियति है क़ी जब सारी दुनिया के लोग प्रेम के आलिंगन में मस्त रहते हैं,तो उसी समय तुम अँधेरे से लड़ने के लिए स्वयम जलती रहती हो.ऐसे में मैं एकदम निसहाय बस तुम्हे जलता हुआ देखते रहता हूँ. हे प्रिये, तेरे जलने पर मेरा पिघलना तो सहज है.तुझे इस बात पर आश्चर्य क्यों है ?''
मोम क़ी बातें सुनकर शमा खामोश रही.लेकिन उसकी ख़ामोशी के शब्दों को मोम समझ रहा था.अचानक ही ये पंक्तियाँ मोम के मुख से फूट पडीं --
''मेरा अर्पण और समर्पण, सब कुछ तेरे नाम प्रिये
श्वाश -श्वाश तेरी अभिलषा ,तू जीवन क़ी प्राण प्रिये.
मन -मंदिर का ठाकुर तू है,जीवन भर का साथी तू है
अपना सब-कुछ तुझे मानकर,तेरा दिवाना बना प्रिये .''
(इस तस्वीर पर मेरा कोई कापी राइट नहीं है.ना ही किसी तरह का कोई अधिकार.इस तस्वीर को आप निम्नलिखित लिंक द्वारा प्राप्त कर सकते हैं.)
www.turbosquid.com/.../Index.cfm/ID/247458
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Sunday, 14 March 2010
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