15. जब कहता हूँ तुम्हें चुड़ैल तो
जब
कहता हूँ तुम्हें
चुड़ैल
तो
यह
मानता हूँ कि
तुम
हँसोगी
क्योंकि
तुम
जानती हो
तुम
हो मेरे लिये
दुनियाँ
की सबसे सुंदर लड़की
जिसकी
आलोचना
किसी
भी तारीफ़ से
कहीं
जादा अच्छी लगती है ।
जिसकी
शिकायत
इनायत
सी लगती है
जिसका
गुस्सा
प्रेम
की किसी भी
कविता
कहानी से
अधिक
पसंद करता हूँ ।
कभी
कभी
तो
लगता है कि
जीता
हूँ इसीलिये ताकि
तुम्हारी
कोई उलाहना
सुन
सकूँ
और
जी सकूँ
तुम्हें
सुनते -देखते
और
बुनता
रहूँ
हर
आती -जाती
साँस
के साथ
एक
रिश्ता
अनाम
तुम्हारा
और मेरा ।
तुम
जानती हो
की
तुम हो
मेरे
लिये
एक
ऐसी पहेली
जिसमें
उलझना
सुलझने
की शर्त है ।
तुम
जितना दिखाती हो
उतना
नाराज
दरअसल
होती नहीं हो
होती
हो
प्रेम
में पगी
और
चाहती हो
हो
तुम्हारा
मनुहार
।
मैं
भी
कैसे
कह सकता हूँ क़ि
तुम
सुंदर नहीं हो
वो
भी तब जबकि
तुमसे
बेहतर
सुंदरता
के लिये
मेरे
पास
कोई
परिभाषा ही नहीं ।
तुम्हें
ताना देकर
बुनता
हूँ
प्रेम
का
ताना
- बाना
और
जीता हूँ
तुम्हें
तुम्हारी
निजता के साथ ।
तुम
तृष्णा की
तृषिता
भावों
की
आराध्या
जीवन
की
उष्मा
और गति ।
और
इन सब के साथ
मेरी
चुड़ैल भी
क्योंकि
एक
जादू सा
असर
करता है
तुम्हारा
खयाल भी ।
तुम्हारा
जादू
मेरे
सर चढ़कर बोलता है
और
मुझमें
मुझसे
अधिक
तुमको
बसा देता है ।
मुझमें
यूँ
तुम्हारा
रचना
बसना
वैसा
ही है
जैसे
कि
वशीभूत
हो जाना ।
अब
तुम्हीं कहो
कि
मेरा तुम्हें
यूँ
चुड़ैल कहना
तुम्हें
परी
या गुड़िया कहने से
बेहतर
है
कि नहीं ?