मैं भी चुप था,वो भी चुप थी ,
फिर हो गई कैसे ,बात न जानू .
इधर लगन थी,उधर अगन थी,
लग गई कैसे आग ना जानू .
ना जाने कितने फूलों पर,
बन भवरा मैं ,मंडराया हूँ .
पर क्यों ना मिटी,
ये प्यास ना जानू .
जिस मालिक के हम सब बच्चे,
है राम वही ,रहमान वही.
फिर आपस में खून -खराबा ,
क्यों हो बैठा मै ना जानू .
हिन्दू-मुस्लिम सिख इसाई ,
ये सब हैं भाई-भाई .
फिर झगड़ा मंदिर -मस्जिद का,
कैसे हुआ ,ये मैं ना जानू .
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Sunday, 14 March 2010
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