कमियां तलाशते रहे ,गलतियाँ निकालते रहे ,
थे वो मेरे अपने जों मेरी बखिया उखाड़ते रहे /
कभी कुछ अच्छा कहा हो याद नहीं ,
मेरे अपने यूँ मुझे संवारते रहे /
दिग्भ्रमित हैं या वे किसी हीनता से ग्रस्त हैं ,
न जान पाया आज तक क्यूँ मेरे पर काटते रहे ;
न अपनापन , दुलार , न अहसास , संबल औ विश्वास दे सके ,
फिर क्यूँ मुझसे आहत होने का आडम्बर बांटते रहे ;
कमियां तलाशते रहे ,गलतियाँ निकालते रहे ,
थे वो मेरे अपने जों मेरी बखिया उखाड़ते रहे /
न उत्साह दिया न साहस न उनके होने का बल ,
पर अपनी विफलताओं का सेहरा मेरे सर बाँधते रहे ;
थे मेरे अपने जों मेरे पैरों तले की जमीं काटते रहे ;
मेरा अच्छा किया हो याद नहीं ,मेरे अपने यूँ ही मुझे संवारते रहे /
कमियां तलाशते रहे ,गलतियाँ निकालते रहे ,
थे वो मेरे अपने जों मेरी राहों में कांटे बिझाते रहे /