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Tuesday, 3 September 2013

हे मेरी तुम

 
सुन सकती हो तो सुन लो 
संबंधों के अनुबंधों में 
सही झूठ के मंतव्यों में
मेरा होना मुश्किल है ।

फेरों की पद्धतियों में
तंत्र-मंत्र की सिद्धी में
तुम चाहो जितना भी लेकिन 
मेरा फँसना मुश्किल है ।

जन्म-जन्म के वादों में 
रीति-नीति के धागों में
रिश्तों का ताना-बाना बुनना 
मेरे लिए मुश्किल है ।

मैं रचने का इच्छुक 
तुम बसने को हो व्याकुल 
लेकिन बंजारे नयनों में
एक ही सपना मुश्किल है ।

डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित

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